न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।
श्री राधा न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन। नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।। हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकोंमंे न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करनेयोग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्ममें ही बरतता हूँ।।3.22।।
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