कंस जन्म ( बेलवरिया )

 कंस जन्म ( बेलवरिया )

          कइके सिंगार, चली नार बगिया में।।

दोहा: उग्रसेन की नारी एक दिन, सोलहौ किया सिंगार।

          नाम पवनरेखा था जिसका, मन में किया विचार।।

बे0: सखी संग जइबइ, वही कुन्ज मे दिल बहलउबइ।

गई सखियन के साथ, बगिया बीच मझारी।

खिला पुष्प हजार, देखि खुशी भइ नारी।।

       बहे सुन्दर बयार।। चली नार बगिया में।।

धुन:    सखी लुटबै हम अलगइ बहार लउटि तब चलबइ भवन।।

दोहा:  द्रुमलिक नामक एक राक्षस था, शोभा निरखि लाभाया।

            उग्रसेन का रूप पकड़कर तुरत सामने आया।

बे0:     कहा तुम आओ, संग हमरे प्रेम बढ़ाओ।।

            लिया उर से लगाई, इच्छा पूरी कीन्हा।

            तजिरानी को पार, असली रूप धइलीन्हा।।

            रही रानी निहार।। चली नार बगिया में।।

धुन:     हटि जारे पापी नयनवा के अगवा से, नाही करउबइ बधनवा तोरा तब छूटि जइहै                 भवनवा।।

            द्रमलिक रक्षसवा को खूब फटकारे।

            रनिया की दशा देख द्रुमलिक पुकारे।।

            देखी के बन्द तोहरा कोछवा हे रानी दइदीन्हा तोहके ललनवा।

            तोरा दसवे महीना में होइके ललनवा।

            बीर बली राजा बलि करिहै शसनवा।।

            सुनिके बचनिया धीरज हुआ कुछ सखियन के आई समनवा।। तोरा।।

दोहा:   संग की सखिया पूछन लागी, बिगड़ा क्यो सिंगार।

            देखि दशा तोहरा हे रानी, दिल भा दुखी हमार।।

बे0:     हाल सब कहिये, संग हमरे घर को चलिये।

            कहिन रानी बुझाइ, आया एक ही बन्दर।

            दिया दुष्ट बिगाड़, हमरा सिगरवा सुन्दर।।

            सुनिये इजहार।। चली नार बगिया में।।

दोहा:     कुन्ज छोड़िके सखी संग में, महल को अपने आई।

            अपने पति के संग में रहिके, दशवा माह बिताई।।

बे0:       ललन एक पाई, पृथ्वी थर्राई।

            बनि बीर महान, प्रजा को खूब सताये।

            आर0 के0 नादान, सबको हाल सुनाये।।

             सुनिये इस बार।। चली नार बगिया में।।

उलारा: किये दुष्ट का बधनवा यदुराई।।


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