सीता त्याग (बेलवरिया)

 सीता त्याग ( बेलवरिया )

                 सुनिये चितलाय, लक्ष्मण की सेवकाई।।

दोहाः        लंका जीत अवधपुर आये, आपन राज सम्हारे।

                 गुप्तचरो को बुला राम जी, उनसे शब्द उचारे।।

बे0:           सुनो मम बानी, पुर की करिये निगरानी।

          कोई दुःखी गरीब, पड़े ना हमें दिखाई।।

                 पुर का सब भेद, आके दीजै बताई।।

                 जाओ हरषाय।। लक्षमण की सेवकाई।।

कजली:    श्री राम जी माथा झुकाइ चले, भेषवा बनाइ चले ना।।

                 घूमें पुर में चहुओर, मचा एक तरफ शोर।

                सुने शब्द सभी उधर अकुलाइ चले भेषवा बनाई चलेना।।

दोहा:        एक धोबी अपने धोबिन को घर से दिया हटाई।

घूमि घामि मैके से धोबिन, घर में फिर से आई।।

बे0:           कहई हरषाई, मम ऊपर करो रिहाई। 

         धोबी रिसिआइ, कहइ राम ना होई।

        सीता लइ आइ, अवगुण लिहेन छिपाई।।

         कैसे कहि जाए।। लक्ष्मण की सेवकाई।।

कजली:    दूत हाल सभी राम से बताइ रहे, लखड़ को बुलाइ रहे ना।।

                भइया सुनो लखड़ लाल, दीजै सिया को निकाल।

                बीर लखन सिया साथ में लिवाइ रहे।। लखड़ को बुलाइ रहे ना।।

                पहुँचे लेके बीच बनवा, सीता सोई वहीं छनवा।

                बीर लखन बचन प्रभु की निभाइ रहे। लखड़ को बुलाइ रहे ना।।

दोहा:       यदि हम कटिबइ भुजा सिया की, तब सीता मरि जइहै।।

                आज्ञा जब ना उर में धारब, भइया खूब गुस्सइहै।।

बे0:           चिता को बनाये, तब हरिकी टेर लगाये।

                सुनि रूदन अपार, विश्वकर्मा जी आये।

                वही जंगल मझार, सुन्दर भुजा बनाये।।

                दिया उन्हे थमाय।। लक्ष्मण की सेवकाई।।

दोहा:        भुजा पाइ के लखन लाल जी, अवध पुरी में आये।

                दिया भुजा जब रामचन्द्र को, नयनो में जल छाये।

बे0:           प्रभु हरषाये, उस धोबी को तुरत बुलाये।

             कर सुन्दर उपाय, सबकी मान बढ़ाये।

         आर0 के0 सुख पाइ, हरि की गाथा गायें।।

        सुनो ध्यान लगाय।। लक्ष्मण की सेवकाई।।

उलारा:     (तर्ज कहरवा)

भेजे सीता जी को बनवा, रघुराई।।


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