जाल्पा की पति सेवा (चौताल)

 जाल्पा की पति सेवा (चौताल)

            जाल्पा बहुतइ कष्ट उठाई, बन में हरि पर ध्यान लगाई,

            सुनि विनय जगत पति आये, उदर हरषाये।।

उड़ान: भोरही में उठत समनवा जा आये, वहिनर तोहरा सजनवा कहाये।।

कहरवा: सुनिके प्रभुवर की बचनिया, खुशी भई सुन्दरी।।

            अपने घर पे जाई जाल्पा सुख से रात बिताई।

            भोर हुआ जब बाहर निकली एक कोढ़ी को पाई।।

            चूमै कोढ़ी की चरनिया ।। खुशी भई सुन्दरी।।

चौ0:     नभ से यही अवजिया आई, होतई भोर सजन मरि जाई,

            घबराई के बहु चिल्लाय।। उदर हरषाय।।

उड़ान:  मइया अनुसुइया बोली तुरतै समनवा, कइसे मरिजइहै बहन तोहरा सजनवा।।

कहरवा: टेके अनुसुइया चरनिया, खुशी भइ सुन्दरी।।

            नही सबेरा हुआ जभी तब ऋषी मुनी घबराये।

            दीनानाथ की कैसी माया कहि कहि टेर लगाये।।

            बोली गिरजा है बचनिया ।। खुशी भई सुन्दरी।।

चौ0:     स्वामी अनुसिइया ढ़िग जाओ, उसके तन का शोक मिटाओ,

            सुनि शिवदानी गये अकुलाये।। उदर हरषाये।।

उड़ान: बोली अनुसुइया थामि प्रभु का चरनवा। काहे बदे बहिन पाये कोढ़िया सजनवा।

कहरवा: कहिके धर लीन्ही चरनिया, खुशी भई सुन्दरी।।

            इसी बीच मे विष्णू ब्रम्हा वहाँ पे पहुँचे आई।

            अनुसुइया अपने बहिनी का सारा दर्द बताई।।

            जीवित कइद्या तू परनिया।। खुशी भई सुन्दरी।।

चौ0:     उमर कोढ़ी की दिया बढ़ाय, गाथा आर0 के0 रहे सुनाय, 

            गुरू पग रज शीश चढ़ाय।। उदर हरषाय।।

उलारा: लिहिन उमर बढ़ाई (2) सती जाल्पा पति की।।


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