श्री राधा वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।। जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रोंको त्यागकर दूसरे नये वस्त्रोंको ग्रहण करता है, वैसे ही जीवत्मा पुराने शरीरोंको त्यागकर दूसरे नये शरीरोंको प्राप्त होता है।। 2.22।।
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