स्वर्ण लंका निमार्ण कथा ( बेलवरिया )

 स्वर्ण लंका निमार्ण कथा ( बेलवरिया )

शंकर भगवान, पार्वती संग लइके।।

दोहा: हसि के बोली गउरा रानी, माना बात हमारी।

मृत्यु लोक मे हमे घुमावा, कइके अभी तयारी।

बे0: अरज सुनि लीजै, इच्छा मम पूरी कीजै।

दुइनउ जन साथ, मृत्यु लोक मे आये।

शंकर भोलेनाथ, गउरा का खूब घुमाये।।

तब लगिगै थकान।। पार्वती संग लइके।।

लचारी: पार्वती बोली बचनिया, दरद कुल बदनिया मे छाइ गये।।

            प्रीतम कइल्या रहइ का ठिकाना।

            समयानुकुल मिले, पानी औ दाना।।

            ढंग से बिते जिन्दगनिया।। दरद कुल बदनिया में छाइ गये।।

दोहा: सुन्दर भवन गिरजा के मन का बना दिये भगवान।

        कहा कि गउरा महल के अन्दर अब तू करा पयान।।

बे0: ध्यान नहि रखिये, संग हमरे सुख दुख सहिये।

        बात शंकर की मान, गउरा कहिन बुझाई।

        बुला पंडित महान, लीजै भवन पुजाई।।

        है यहि अरमान।। पार्वती संग लइके।।

लाचारी: गउरा की सुनिल्या नदनिया, दरद कुलि बदनिया में छाई गये।

            रावण को शंकर जी तुरतइ बुलाये।

            पुजा सुने लेकिन घरवा गवाये।।

            दुखी भये दुइनउ परनिया।। दरद कुल बदनिया में छाइ गये।।

दोहा: शंकर जी गृह दान कर दिये गउरा गिरी उतान।

           हवन कुण्ड में गिरि के गउरा तज दीन्ही है प्रान।।

बे0: पुजाइन जाके, बम्बा देवी का नमवा पाके।

        शंकर भगवान, देवपुरी निअराये।

        आर0 के0 हरषाय, शिव को शीश झुकाये ।।

        गाके गुणगान।। पार्वती संग लइके।।

उलारा: शिवदानी महान (2) दान महलिया दिहले।।



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