कृष्ण भक्त गोपी की हाल ( फाग )

 कृष्ण भक्त गोपी की हाल ( फाग )

तन मन सब लेती चुराइ कधइया तोरी बांस की बसुरिया।।

जब कान्धा बनवा में बसुरी बजाते। नर नारी सुनते ही मन से लुभाते।।

जाते पास अकुलाइ कन्धइया तारी बास की।।

एक ग्वाला बोला है नारी से अपने, काहे कधइया के तकती हो सपने।।

दीजै उन्हे बिसराइ कधइया तारी बास की।।

सन्ध्या समय कान्धा बसुरी बजाये। गोपी का जिया रहि रहि अकुलाये।

पति को दीन्हा सुलाई कधइया तोरी बास की।।

कहे आर0 के0 गोपी तनवा को तजिके। कीन्हा मिताइ कधइया से जमिके

पति को पहुचकर जगाइ।। कधइया तोरी बास की।।

उलारा: पाकर प्रभु प्यार (2) गोपी अमर पद पाई।।


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