सुदामा की चोरी (चौताल)

 सुदामा की चोरी (चौताल)

        नहि है अलाव माँ का सुझाव, श्री कृष्ण जी शीश झुकाये, 

        चले मित्र को संग लिवाये, हृदय हरषाय।।

दे0: चलत देखि दोनो को बुलाई, भूना चना देकर समझाई, 

जाकर वहा चबाना, अति शीघ्र लौट कर आना।

कौ0: शीश दोनो जन झुकाकर, चल दिये बन बीच में।

एक तरू पर जा चढ़े श्री कृष्ण जी बन बीच में।।

उड़ान: तेहि छड़ आई, घिरि नभ में बदरिया।

टप टप नीर चुवइ बहली बयरिया।।

चौ0: लग गई ठंड सह दुःख प्रचंड, श्री दामा अति घबराये,

पर कृष्ण जी खुशिया मनाये ।। हृदय हरषाये।।

देढ़: बोले सुदामा सुनो बृज मोहन, लागी क्षुधा है करा दीजै भोजन,

 मोहन कहे समझाई, चलो कुटिया मे भोजन कराई।।

कौ0: इस तरह समझा उन्हे लकड़ी जुटाने मे लगे।

मौका पाकर बिप्र जी चर्बन चबाने मे लगे।।

उड़ान: पट पट शब्द सुनत ही कधइया।

बोले कस चर्बन चाबत भइया।।

चौ0: कह उठे बिप्र मत करो फिक्र, दांतो में कम्पन छाये,

 ठंडक से जिया घबराये।। हृदय हरषाये।।

दे0: देवकी लालन हसे सुनिके बयनवा, माया का राक्षस बनाय तहि छनवा, भेजे सुदामा पास, जाइ देने लगा है त्रास।।

कौ0: देखि दानव को सुदामा बिप्र चिल्लाने लगे।

उस तरफ तरू पर कधइया माया दरसाने लगे।।

उड़ान: निज करनी से आइ तन पे अफतिया।

उर बीच ध्यान दिये कृष्ण की मुरतिया।।

चौ0: सुनकर पुकार पहुचे अगार, निज मित्र की जान बचाये, 

हसि आर0 के0 गीत सुनाये।। हृदय हरषाये।।

उलारा: श्री गोविन्दराय (2) मित्र परीक्षा लिहले।।


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