हिरन द्वारा राजा दशरथ को श्राप (चौताल)

 हिरन द्वारा राजा दशरथ को श्राप (चौताल)

हिरनी हिरन खुशी हो मनवा, करते आपस मे रतिदिनवा,

नृप दशरथ कदम बढ़ाये, बैन ये सुनाये।।

राधे: अति सुघर जोड़ियो को तककर राजन का दिल हरषाया है।

सोचा इनको ले चलूँ मार, यह उनके दिल में आया है।।

उड़ान: अइसन सोचि कर में धनुष उठाये निरपती।

तीर तरकस की वहि पर चढ़ाये भूपति।।

चौ0: झाणी बीच नजर को डाले, ध्यान में आये जोड़ी वाले,

तभी दशरथ बाण चलाये।। बैन ये सुनाये।।

राधे: वह बाण धनुष से जाकरके, हिरनी को तुरत गिराया है।

यह दशा देखकर हिरन वहाँ, ब्याकुल हो रूदन मचाया है।।

उड़ान: जइसे सोचे नृप चलिके उठाऊँ उसको।

जाए महलो में अपने दिखाऊँ उसका।।

चौ0: भूप को अपने निरखि समनवा, बोला मरिगै मोर जननवा,

यह कहकर श्राप सुनाये।। बैन ये सुनाये।।

राधे: जैसे हीर तुम मेरे सुख में, दुख देकर मुझे रूलाये हो।

हो जावो नपुंसक उसी तरह, करणी का फल तुम पाये हो।।

उड़ान: श्राप सुनिके राजा दशरथ दुखारी होइ गये।

चौथे पन में पुत्र पाइके सुखारी होइ गये।।

चौ0: कहते आर0 के अति हरषाई, गुरू पगरज को शीश चढ़ाई,

रहे भूप अवध निअराये।। बरणि नहि जाये।।

उलारा: वही बन के मझार (2) भूप गये सरमाई।।


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