कजली: वसुदेव का बारात जाना
श्री वसुदेव लइके बरात चले, मन मे हर्षात चले ना।।
पहुचि कंस के दुआर, गावे सभी मंगल चार।
हुई शादी युगल जोड़ी संग सुहात चले।। मन मे हर्षात चले ना।।
छाये खुशिया अपार, करे सभी जेवनार।
हुई सुबह विदा करने की बात चले।। मन मे हर्षात चले ना।।
कंस रथ को सजाय, अपनी बहन को बिठाय।
रथ हाकइ स्वयं लगाकर के घात चले।। मन मे हर्षात चले ना।।
हुआ गगन पथ से शोर, बैरी होगा भैने तोर।
कंस देवकी को मारइ तत्काल चले।। मन मे हर्षात चले ना।।
श्री वसुदेव लइके बरात चले, मन मे हर्षात चले ना।।
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