कजली: नाग नाथन
कूदे कालीदह कधइया, किये हुसियारी पानी मे।।
खेलत गेद कृष्ण कन्हाई, गिरिगा गेद जमुना मे जाई।
घबराते कृष्ण कन्हाई, चहुदिसि चितइ रहे यदुराई।।
छन मे जाइके कुदले काधा।। जल मझारी पानी मे।।
जब जल मे कूदे नन्ददुलार, झट पहुचे नागिन के द्वार।
टिके वहां फिर किये विचार, ठाट से चौमुख रहे निहार।।
डाटि के नागिन कहती सुनिल्या मोर बचनिया पानी मे।।
ढं़ग से नागिन कह समझाई, तीरे तुरत निकल तूँ जाई।
थ थर मत कर कृष्ण कन्हाई, देबइ जब हम नाग जगाई।।
धइके काटी लेइही तोहका।। जल मझारी पानी मे।।
नागिन का जब सुने बयनवा, पट हसि बोले नन्द ललनवा।
फौरन माना मोर कहनवा, बादिश खड़ा करब तोहि छनवा।।
भागब नाही नगिन सनिल्या मोरि बचनिया पानी मे।।
मन मोहन जब शुजा उठाये, यहि छन नाग नाथ लइ आये।
रो रो नागिन कहे समझाई, लिहले नाग को नाथ कन्हाई।।
वहिछन मानेस दुश्मन प्रभु से अपनी हारी पानी मे।।
शेषनाग की महिमा खोई, षडयन्ती सब का था जोई।
सब जन खुशिया लगे मनावइ, हसि के आर0 के0 गीत सुनावई।।
क्षण मे नन्द बबा कान्धा को गले लगावे पानी मे।।
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