कजली: इलाहाबाद वर्णन

गोरिया फिकर करहु नहि मनवा, चलबइ शहर इलाहाबाद।।

करबइ साधन मोटरकार, पहुचब झूँसी बीच मझार।

आगे गंगा जी का किनार, पग छू नाव से उतरब पार।।

दारागंज पहुचि वहि छनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।

आटो रिक्शा पर बइठाके, बिरला मन्दिर तक पहुँचा के।

फिर हनुमान का दर्स कराके, किला के अन्दर तुम्हे घुमा के।।

पहुचे संगम मे यह तनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।

नाव से चलबइ अरइल ओर, देखब नैनी जेल का कोर।

पहुचब जमुना पुल के छोर, पैदल घूमब चारउ ओर।।

खाके बहादुरगंज मे पनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।

चौक मे सुन्दर बिसात खाना, होटल मे है रात बिताना।

खाबइ लोकनाथ मे खाना, सब समान ले होब रवाना।।

भोर मे उठबइ दुइनउ जनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।

अउबइ जहाँ अलोपिन माई, पग छू कर के देब दुहाई।

फिर कम्पनी बाग मे जाई, सगरउ शहर मे देब घुमाई।।

कटरा चौराहे पे धियनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।

जाकर नेत राम के द्वार, खिला मिठाई करबइ प्यार।

लउटि के अउबइ घर उसवार, मागे आर0 के0 हाथ पसार।।

दइद्या सरस्वती जी ज्ञनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।


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