कजली: मान सिंह राठौर

किया सलामत खा ने मिताई, ठाकुर मान सिंह के संग।।

खाते पीते संग निभावे, गली गली मे नाम कमावे।

घर मे बइठि के मउज उड़ावे, चक्कर विधि का खेल दिखावे।

छलिया चाहा धर्म नसाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।।

जानो मित्र सलामत खान, झट से मेरी कर पहचान।

टले ना हारी कभी जुबान, ठाकुर की यह निति पुरान।।

डर कर दुश्मन देत दुहाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।।

ढ़ाढ़स दिल मे सलामत लाया, तेहि छड़ मान से अर्ज सुनाया।

थाही मन है मोर लुभाया, दे दो अमर सिंह की जाया।।

धक्का दिल मे दिया लगाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।।

नाही मान किया इनकार, पास लड़की के जाए उस बार।

फौरन उसको कर तइयार, बरात बुलाया निज दरबार।।

भइल बिदाई मे जदुआई।। ठाकुर मान सिंह के संग।।

मारो खीचि के हमइ कटार, यह बाला ने किया पुकार।

राम जी रखिहै धर्म हमार, लाज बचै कुल की इस बार।।

वहि कामी से होइ जुदाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।।

शीश पर तेगा दिया चलाई, सहज ही लीन्हा धर्म बचाइ।

हसि के आर0 के0 कर कविताई, क्षत्रिय मान ने किया विदाई।।

त्रसित सलामत घर निअराई।।  ठाकुर मान सिंह के संग।।

किया सलामत खा ने मिताई, ठाकुर मान सिंह के संग।।


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