गजल: सीता फुलवारी

शैर: दुर्गा पूजन को चली, जनक लली इक बार।

स्खियो सहित बाटिका मे जा, देखत नयन उघार।।

दशरथ सुवन सुमन लेने को, पहुचे थे उस ओर।

प्रेम बाण से हुआ था घायल, प्रभु के हृदय का छोर।।

        

        मग से सुहाते रामलखन गुरू के साथ मे।

        पहुचे जनक बगीचे मे हैं गुरू के साथ मे।।

        बोले है गाधि पुत्र कुवर पुष्प जा के लाओ।

        पहुचे है फूल बगिया भाई के साथ मे।।

        मन मे तमन्ना दुर्गा पूजन को लेके सीता।

        पहुची वहॉ पे सीता सखियो के साथ मे।।

        नजरे हुई है चार जभी राम औ सिया जी की।

        हरे है कामदेव जी उन सब के साथ मे।।

        विनती सुनी है मइया जब आर0 के0 पुकारा।

        आके लौट के रघुवर भाई के साथ मे।।


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