कजली: घटोत्कच जन्म
कोरव हुए बडे़ उत्पाती, दिये हाराई पाण्डव को।।
खेलत पाण्डव चले शिकार, गये पहुच बन बीच मझार।
घेरे घटा रही उस बार, चारउ ओर हुआ अधियार।।
छलिया बना हिडिम्ब निपाती, दिया डराई पाण्डव को।।
कोरव हुए बडे़ उत्पाती।।
जाकर बहना मास लिआओ, झरने का जल शुध्द पिलाओ।
टहरत उन पॉचो ढ़िग जाओ, ठीक समय पर अर्ज निभाओ।।
डरती हुई हिडिम्बा बतिया, सभी सुनाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।।
ढ़ाढस दिल मे रख उस बार, तुरतइ भीम से कइली प्यार।
थामे बदन देखि हुशियार, दइके गाली तुरत हजार।।
धक्का भारी भीम के तन मे, दिया लगाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।।
नफरत दिल मे भीम बढ़ाय, पापी का तन लिया उठाइ।
फिर से मुष्टिक एक जमाय, बहिया तोड़ के दिया गिराइ।।
भागई लगा वहाँ से पापी, देत दुहाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।।
मग हटने की लिया तकाय, यहि पर भीम जी क्रोध बढ़ाय।
रगड़ा राक्षस को हर्षाय, लीन्ह हिडिम्बा सुत जन्माय।।
वहीं घटोत्कच नाम कहाकर, दिया बढ़ाई पाण्डव को।।
कोरव हुए बडे़ उत्पाती।।
शीतल हवा रूकी उस बार, सहते पाण्डव कष्ट अपार।
हसते आर0 के0 यह इजहार, क्षत्रिय गीत करे तइयार।।
त्रैलोकी प्रभु फिर से शासन, दिया थमाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।।
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