कजली: कृष्ण लीला

बसिया राहे से बजावा, काधा रसिया हो लहरी।।

वंशी की अवजिया सुनली गोकुला गुजरिया पहिने धारी चुनरी।

सिर पर दहिया के कमोरिया मगिया मोतियन से भरी।। बसिया राहे।।

वंशी की अवजिया सुनली गोकुला गुजरिया पहिने लाली चुनरी।

हथवा सोनवा के कंगनवा पोरवा पोरवा मुदरी।। बसिया राहे।।

वंशी की अवजिया सुनली गोकुला गुजरिया, पहिरे नथिया झुलनी।

नेहिया काधा से लगवली, धइके बन की डगरी।। बसिया राहे।।

रास्ते से मिलि गये यदुराई दौड़ि के पकड़ी लिये कलाई, ओढ़े काली कमरी।

कहते आर0 के0 हसिके गावा कहि जा राधा गुजरी।।

बसिया राहे से बजावा, काधा रसिया हो लहरी।।



Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।