कजली: शिव बारात
शैर: शिव शंकर बारात चले है सज धज भेष निराला है।
विच्छू कुण्डल कान मे सोहै कमर बाघ की छाला है।।
शिव शंकर अविनाशी के संग, सुरगण बने बराती।
नगर हिमाचल की सब नारी, रूप देख भय खाती।।
संग मे लइके बरात त्रिपुरारी बने, हिमगिरि दुआरी चले ना।।
भूत प्रेत मतवाला, बढ़वा बैल अहै काला।
उसपे भोला दानी कइके सवारी चले।। हिमगिरि दुआरी।।
बिच्छू गोचर सुहाये, गले नाग लटकाये।
नाग के फन से भीषण फुफकारी चल।। हिमगिरि दुआरी।।
किये लोखरी सिंगार, संग मे आया सियार।
उनके सथवा मे कुत्ता औ विलारी चले।। हिमगिरि दुआरी।।
जो ही देखत बरात चेहरा उसका मुर्झात।
आर0 के0 शिव को देखिके सुखारी चले।। हिमगिरि दुआरी।।
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