दुर्गा स्तुति (मोरी छतरी के नीचे)

श्लोक: दुर्गे स्मृता हरति भीतिम् शेष जन्तोः

स्वच्छः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि,

दारिद्रय दुख भय हरिणी का त्वांदन्या

सर्व उपकार करणाय सदार्द चिता।।


उरमे अति प्रेम बढ़ा के जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।।

माँ चर्तुभुजी कहलाती, उर का सब पाप, मिटाती।

संग सब जन प्रीति बढ़ाके, जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।।

तुम आदि शक्ति हो माता, नहि मग है कही दिखाता।

मन से सब अर्ज सुनाके।। जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।।

महिषासुर मर्दिन माता, बन भक्तन की सुखदाता।

कर से कर सभी मिलाके।। जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।।

तब शरण आर0 के0 आये, गुरू श्री राम सुःख पाये।

मन की सब मैल मिटाके।। जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।।












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