दुर्गा आरधना

लागत सुन्दर क्वार महिनवा, आयल नवरातर का दिनवा,

चलिके मइया से पिरितिया लगाइल्या मितवा।। लागल।।

पापनासिनी अम्बे माँ की प्यार से करो भजनिया।

सिंह वासिनी प्यारी माँ से लागल बड़ी लगनिया।।

मइया आदि शक्ति महरानी, उनकी डगर नही अनजानी।।

चला चली विपतिया हटाल्या मितवा।। लागत सुन्दर क्वार।।

दुष्ट मर्दिनी दुर्गा माँ जी हरदम दया लुटाती।

जो भी इनके द्वारे जाता अमर प्रेम बरसाती।।

उर का तिमिर दूर होइ जाए, मन की मैल सदा धुल जाए,

चला माँ का मन्दिरवा सजाल्या मितवा।। लागत सुन्दर क्वार।।

शिम्भु निशिम्भु का प्राण नसइया आप हऊ महरानी।

दया का आचर खोला मइया महिमा तोहरा जानी।।

तन से काम क्रोध हर लेती, द्वेष हो दूर यही वर देती।

आके माँ से अरजिया लगाइल्या मितवा।। लागल सुन्दर क्वार।।

सदा आर0 के0 तोहसे भइया आपन विनय सुनावे।

प्रेम भाव को दरसा मइया श्रध्दा सुमन चढ़ावे।।

तोहसे करइ मनोज सहारा, मन से गन्दा भाव विसारा।

आवा माँ से अरजिया सुनाल्या मितवा।। लागत सुन्दर क्वार।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।