भोजपुरी (नारदमोह)

देवर्षी एक दिनवा हरि गुण को गाते, पहुचे हिमालय की ओर, आने लगा वहि पर पवन का झकोर।।

कल कल का शब्द करे सुरसरि मयनवा।

तरूवर तला पर था खग का रहनवा।।

करते गुन्जार देव नदिया किनरवा पिहके बगलिया मे मोर।। आने लगा।।

पर्वत नदी वन की शोभा निराली।

मनहारी लगती थी कोयल की बोली।।

पिउ पिउ रटनवा पपीहा लगाये, होता सुखद बन शोर।। आने लगा।।

हिरनी हिरन मौज मस्ती मे झूमे।

बार बार हिरनी हिरन देहिया चूमे।।

करते कुलेल देखि नारद का मनवा होइ गइले तप मे विभोर।। आने लगा।।

श्राप भूलि नारद लगाये धियनवा।

हुए कामजीत मगर मचिगा तुफनवा।।

आर0 के0 नही प्रभु की माया को जाने।

 नारद झुके मदकी ओर आने लगा वहि पर पवन का झकोर।।


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