कजली: निर्गुण
चली मरि के करेजवा मे गोली सखी, मुख से ना बोली सखीना।
किये सोलहौ सिंगार मोती गुहे बार बार।।
रही दुलहिन सुरतिया की भोली सखी।। मुख से ना बोली।।
आये चार ठी कहार, बाजा लइके मजेदार।
माला फूल से सजाये रहे डोली सखी।। मुख से ना बोली।।
रोवई माई अउर बाप, सूना सारा परिवार।
हरिअर बास की बनाये रहे डोली सखी।। मुख से ना बोली।।
गये गंगा के किनार, चिता किये तइयार।
फूके मइयत को जइसे फूके होली सखी।। मुख से ना बोली।।
हुआ नइहर बेगाना, लगा ससुरे मे ठिकाना।
गोरी छोड़ चली नइहर की टोली सखी।। मुख से ना बोली सखीना।।
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