कजली: धोबी का ताना
कहे धोबिया धोबिनिया अगार सुना, हमरी पुकार सुना ना।।
खासी किहले पिटाई, गहे कर मे कलाई।
घर से देबई निकारी छिनार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
चट से बोली लुगाई, छल से करब ना ढ़िठाई।
जइबइ अपने नइहरवा मझार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
झट से धोबिया पुकारे टलि जा नैन से हमारे।
ठेस अइसन लगइबइ करार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
डाह धोबिया बढ़ाये, ढ़ोग नारी रचाये।
तड़के चलि भइली भइया दुआर सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
थामि चलली डगर, दिखि नइहर नगर।
धरि मनवा मे धइके इस बार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
नही नइया हमार, पार लगिहै किनार।
फिर ऊँ बिचवा मे होये बेकार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
बतिया बूझत जब नार, भई घर को तइयार।।
महल अन्दर मे पहुची जब नार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
यहॉ नही है ठेकान, राम मै हूँ ना जान।
लाके लंका से रक्खे जो नार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
वहाँ सुनकर जो आय, शीश राम से झुकाय।
सारी बतिया बताया उस बार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
हाल रामचन्द्र जान, क्षत्रिय धर्म को पहचान।
त्रसित आर0 के0 सुनावे इस बार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।
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