गीत: पुरवासी विलाप

सवैया: हे प्रिय भ्रात सुझात नही हिय मोर अहै अति आज दुखारी। राम जी राज नही करिहै अब जात अहै बन बीच मझारी।। वृझ अवध का काटि दियो, बनि भ्रात सुनो कैकेई कुठारी। भूप ना बोलहि होश नही, है दखि रहा रनिवास दुखारी।।


बनि गइली कैकेई कुठारी, गजब करि डारी रे हारी।।

मागी लिहली नृप जी से दुइ बरदनवा।

भरत जी भूप बने पहिला मगनवा।।

दुसरा अहइ बड़ दुखारी।। गजब करि डारी रे हारी।।

निठुर कैकेई बोली सुना नृप प्यारे।

राम जी को ओट कइद्या ऑख से हमारे।।

यही हउवे अरज हमारी।। गजब करि डारी रे हारी।।

राजा को बिहोसी छाये सुनिके बचनिया।

थर थर कापई लागी उनकी बदनिया।।

कहाँ राम नृपवर पुकारी।। गजब करि डारी रे हारी।।

आर0 के0 नयनवा से असुवा बहाये।

सिया औ लखन राम रहिया सिधाये।।

तन पे जोगिया पट डारी।। गजब करि डारी रे हारी।।


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