नकटा: राधा द्वारा दही का बखान

शैर: दधि बेचन राधा चली सर पर मटकी डारि।

        पहुचि कधइया के द्वारे पर मटकी दइ उतारि।।

        दही खरीदन को नर नारी, पास गये निअराई।

        जो भी आता उनके सम्मुख, राधा करे बढ़ाई।।

 

        दहिया बड़ा नीको, दहिया बड़ा नीको।।

        लइल्या कधइया दहिया बड़ा नीको।

        एहमुर लखा तनिके फेरिके नजरिया।

        पानी ना पउब्या तू एहिमा सवरिया।।

        हथवा ना लाग अहइ नाहि अहइ फीको।।

        लइल्या कधइया दहिया।।

        सुन्दर दही बाटे होइहै ना धोखा।

        पइब्या ना अइसन हमार माल चोखा।।

        दाम लेब पहिले उधार नही चीखो।।

                 लइल्या कधइया दहिया।।

        दहिया खरीदा तू माना कहनवा।

        अइसन दही नाही अइहै समनवा।।

        बात माना हमरी पछतावा ना जी को।।

                 लइल्या कधइया दहिया।।

        हमरे दही का तू लइल्या सुवदवा।

        आर0 के0 नही मरिहै बहुत बहुत मेहनवा।।

        मिटा लीजै शंका दहिया लगे नीको।। लइल्या कधइया दहिया।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।