कजली: कृष्ण द्वारा माता को लीला दिखाना

काधा एक दिन अपनी माया रहे दिखाई माता को।।

खाते मिट्टी कृष्ण कन्हाई, गई वहॉ एक ग्वालिन आई।

घूमि के पास गई निअराई, चट से कृष्ण पे ध्यान लगाई।।

छल से कृष्ण जी अपनी काया, रहे दिखाई माता को।। काधा।।

जल्द से लौटी छोड़ि कन्हाई, झारन दिल की मैल ना पाई।

टेकत चरण मात सन जाई, ठीक से सुनहु यशोमति माई।।

डर लागे अति कृष्ण की माया।। रहे दिखाई माता को।। काधा।।

ढं़ग से मिट्टी खात ललनवा, तोहरा उस पर नही धियनवा।

थामि के कर को लाई समनवा, देखि के पूछै लगी मयनवा।।

धीरज रखकर मुख को काधा।। रहे दिखाई माता को।। काधा।।

ना अब हमसे झूठ तू बोल, पट से अपने मुख को खोल।

फौरन माता का दुःख तौल, बोलत बचन कृष्ण अनमोल।।

भूमंडल मुख के अन्दर प्रभु रहे दिखाई माता को।। काधा।।

मात यशोदा विश्मित भइली, यह संसार उदर मे पइली।

राज समझ प्रभु पग को धइली, लौटि संग काधा के अइली।।

जहॉ से आई चरित सत्कर्म का रहे बताई माता को।। काधा।।

शीश पर मोर मुकुट अति सोहे, षटयंत्रिन की रहिया जोहै।

साजन बनि राधा मन मोहे, हसते आर0 के0 रहिया जोहे।। 

क्षण मे हरि भक्तन की काया रहे दिखाई माता को।।

,काधा एक दिन अपनी माया रहे दिखाई माता को।।


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