गीत: राम वन गमन

शैर: गुरू आज्ञा से दशरथ बोले तिलक राम का होय।

मगर विधाता उनका खेला पल मे दीन्हा खोय।।

कैकेई राजा दशरथ से मागी दो बरदान।

एक से राजा बने भरत जी राम को हो बनबास।।


चले अवध बिहारी अवध नगरिया छोड़ के।।

सीता माँ रनिवास के अन्दर जब ऐसा सुन पाई।

दौड़ के आई राम के सम्मुख पग मे शीश झुकाई।।

बोली मै भी चलूंगी पग मे पिरितिया जोड़ के।। चले अवध।।

श्री राम जी उन्हे उठाये सुनकर आरत बानी।

चलो संग मे सोच छोड़िके हे सीते महरानी।।

तबहीं लक्ष्मण दिखायें भू पर चरनियां तोड़ के।। चले अवध।।

आँसू के टपकाव से भीगा प्रभु का कोमल पैर।        

बोले आपको तजकर मेरा नही जगत मे और।।

मरूँ जिऊँगा सदा ही तुमही नाता जोड़ के।। चले अवध।।

कहे आर0 के0 तीनउ जनवा चल है बन की ओर।

दुःख का बादल अवध जनो को पल मे दिया झझोर।।

पहुंचे सुरसरि किनरवा सबही से मुखड़ा मोड़िके।।

चले अवध बिहारी अवध नगरिया छोड़ के।।

                                                                                               



Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।