कजली: पक्षी का नाम
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
खजन शरद ऋतु मे आवत, गेर्रा जल मे कला दिखावत।
घाघर पक्षी अति मन भावत , चकवा चकवी शोर मचावत।।
छंगुर जल मे कला दिखावे।। माह बसन्त मझारी ना।।
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
जूही जल मे ही सुःख पावइ, झुर्री उसका संघ निभावइ।
टेकवा के मन को जल भावइ, ठब्बी इसका मन सरमावाइ।।
डेरई रूप् रंग मे ।। माह बसन्त मझारी ना।।
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
ढे़कुची पकड़ ना कोइ पाता, तोता राम राम रट लाता।
थीहर जान बूझ इठलाता, देबुही प्यार के शब्द सुनाता।।
धनेष पीड़ा को हर लावे ।। माह बसन्त मझारी ना।।
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
नकटा खाने मे प्रिय लागे, पोरिस बड़े तेज से भागे।
फेकुही रूप ईश से मागे, बगुला बत्तख का दिन जागे।।
भेलख मन मन गीत सुनावे।। माह बसन्त मझारी ना।।
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
मैना मोर लोग सब पालइ, यमिका बच्चन पर दुःख डारई।
रेघनी मन मस्ती से हालइ, लेदी जल को देखइ भालइ।।
वरूही हर पल ज्ञान सिखावे।। माह बसन्त मझारी ना।।
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
सुभीखा सबही लोग मगावइ, षटकोणवा लकड़ी को नसावइ।।
क्षमुखी आर0 के0 हिय दहलावे।। माह बसन्त मझारी ना।।
कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।।
Comments
Post a Comment