कजली: प्रयाग वर्णन

पियवा चलि के हमइ दिखावा, शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।।

शास्त्री पुल के इधरइ रूकिके, देखा कूप समुद्र का झुकिके।

पास मे कुटी एक है लुकिके, जिसे बखानइ सब जन रूचि के।।

वहॉ से नीचे उतरि के आवा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।।

आगे मिलइ त्रिवेणी गंगा, बरदायिनी ना तनिकउ शंका।

संगम मे होइहै मन चंगा, हनुमत बीर बली रणबंका।।

बगलइ किला का ध्यान लगावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।।

मात अलोपिन का शुभ दर्शन, कइके हर्षित होइहै यह मन।

फिर आनन्द भवन को अखियन, करिहै भरद्वाज का दर्शन।।

युनिवरसिटी की शान बढ़ावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।।

रिक्शा चढ़ि के कचेहरी चलबई, हाथी पार्क मे मन बहलउबइ।

सुघर कम्पनी बाग मे घुमबइ, फिर हनुमान को शीश झुकउबइ।।

गिरिजा मन्दिर अति मन भावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।।

हाईकोर्ट दिखावा हसिके, खुशरो बाग प्रेम मे फसिके।

हथवा पकड़ि हमारा कसिके, पहुचा जहाँ भीड़ है ठसिके।।

चौक मे घण्टा घर दरसावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।।

बारह खम्भा है मशहूर, जमुना का पुल तकब जरूर।

आर0 के0 कहते तजि मगरूर, फाफामऊ मे आइ हजूर।

कर्जन पुल तक संग निभावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।।


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