भजन पूर्वी: सीता हरण

बनि के मृग सोने का वह मारचि लुभवले बा,

सीता को भरमउले बा ना।।

आज्ञा रावन का वह पाई, जाके पंचवटी निअराई।

सीता हरण हेतु वह माया को फइलउले बा।। सीता को भरमउले बा ना।।

सीता जी बोली उस बार, लीजै इसकी खाल उतार।

सुनि मारिच राम को निज पीछे दौड़उलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।।

दिहले रघुबर बाण चलाई, तीर घुसा सीने मे जाई।

आवा हाय लखन काहि वह मारिच बुलउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।।

सीता जी सुनकर घबराई, लखन को हरि के पास पठाई।

दसानन विप्र रूप आपन घात लगउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।।

रावण जय जयकार मनाई, सीता भिक्षा लेके आई।

लेबई बधी भीख ना धर्म दोष ठहरउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।।

मइया धर्म हेतु घबराई, रेखा बाहर पाव बढ़ाई।

रावण बाह पकड़ि के रथ के बीच बिठउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।।

रावण चला है लंका ओर, आर0 के0 दुःख से गये झझोर।

सुन्दर रूप जगत मे सब दिन नास करउले बा ।। सीता को भरमउले बा ना।।



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