कौवाली (राम लक्ष्मण हरण)

 कौवाली (राम लक्ष्मण हरण)

अहिरावण छोड़े अपना मकनवा।

जाकरके पहुँचा है रावण के समनवा।।

शैर: पहुच के अहिरावण माया को फइलाई।

उजाला की जगह पे अंधेरा कइ डाई।।

खड़े थे दरवाजे पर हनुमत मतवाले।

जान पड़ा मानो लगा जुबा मे ताले।।

हनुमत जी चारो तरफ पूछ को फेलाये थे।

राम की सारी सेना बन्धन मे फसाये थे।।

सोई रहे सबही ना रहला धियनवा।। जाकर के पहुचा है राम।।

शैर: हनुमत का मुखड़ा दरवाजे का रूप रक्खे था।

उधर से अहिरावण हनुमत को लक्खे था।।

धरे था रूप जस विभीषण की काया थी।

बात मालुम ना पड़ी यह उसकी माया थी।।

कहा हनुमत से तात तुम हमे जाने दीजै।

प्रभु के पास मे अज्ञा को निभाने दीजै।।

हनुमत ने सुना जभी उसका बयनवा।। जाकर के पहुचा राम ।।

शैर: बीर हनुमत ने उसे जाने की आज्ञा दीन्हा।

पहुच के अन्दर राम लखन को उठा लीन्हा।।

राम लखन को चोर जल्दी से चुराई लिया।

देवी की ताकत रही जल्द ही उड़ाई लिया।।

पहुचि के अहिरावण अपने नगर मे आया।

जल्दबाजी में दोनो भाई को वह नहलाया।।

बोला है पापी करब तोहरा बधनवा।। जाकर के पहुचा है राम ।।

शैर: उधर हनुमत जी आये राम ने उन्हे चीन्हा।

अहिरावण के प्रश्न का जबाब ना दीन्हा।।

देखि के पापी दसा खड़ग को उठाई लिया।

धार तलवार की वह राम पर चलाई दिया।।

बीर बजरंगी रूप बदलकर तुरत आये।

मार कर पापी को वह दोनो को छुड़ा लाये।।

आर0 के0 कहे रावण देखे सपनवा।। जाकर के पहुचा है राम के समनवा।।





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