विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांच्शरति निःस्पृहः।

 श्री राधा


विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांच्शरति निःस्पृहः।


निर्ममो निरहक्ङारः स शान्तिमधिगच्छति।।


जो पुरूष सम्पूर्ण कामनाओंको त्यागकर ममतारहित, अहंकाररहित, 

और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शान्तिको प्राप्त होता है अर्थात् वह 

शान्तिको प्राप्त है।।2.71।।


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