त्यक्त्वा कर्मफलासग्ङं नित्यतृप्तो निराश्रयः।

 श्री राधा


त्यक्त्वा कर्मफलासग्ङं नित्यतृप्तो निराश्रयः।


कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किच्ञित्करोति सः।।


जो पुरूष समस्त कर्मोंमें और उनके फलमें आसक्तिका सर्वथा त्याग 

करके संसारके आश्रयसे रहित हो गया है और परमात्मामें नित्य तृप्त है, वह 

कर्मोंमें भलीभाँति बर्तता हुआ भी वास्तवमें कुछ भी नहीं करता है।।4.20।।


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