अन्नाभ्दवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।

 श्री राधा


अन्नाभ्दवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।


यज्ञाभ्दवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुभ्दवः।।


कर्म ब्रह्मोभ्दवं विध्दि ब्रह्माक्षरसमुभ्दवम्।


तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।


सम्पूर्ण प्राणी अन्नसे उत्पन्न होते हैं, अन्नकी उत्पत्ति वृष्टिसे होती है, वृष्टि 

यज्ञसे होती है और यह विहित कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाला है। कर्मसमुदायको तू 

वेदसे उत्पन्न और वेदको अविनाशी परमात्मासे उत्पन्न हुआ जान। इससे 

सिध्दि होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञमें प्रतिष्ठित 

है।।3.14-15।।


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