गतसग्ङस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।

 श्री राधा


गतसग्ङस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।


यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।


जिसकी आसक्ति सर्वथा नष्ट हो गयी है, जो देहाभिमान और ममतासे 

रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्माके ज्ञानमें स्थित रहता है-

ऐसा केवल यज्ञसम्पादनके लिये कर्म करनेवाले मनुष्यके सम्पूर्ण कर्म 

भलीभाँति विलीन हो जाते हैं।।4.23।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।