आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठंसमुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।

 श्री राधा


आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठंसमुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।


तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमान्पोति न कामकामी।।


जैसे नाना नदियोंके जल सब ओरसे परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठावाले समुद्रमें 

उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस 

स्थितप्रज्ञ पुरूषमें किसी प्रकारका विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं, 

वही पुरूष परमशान्तिको प्राप्त होता है, भोगोंको चाहलेवाला नहीं।।2.70।।


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