अपाने जुहृति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे।

 श्री राधा


अपाने जुहृति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे।


प्राणापानगती रूद्ध्वा प्राणायामपरायणाः।।


अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुहृति।


सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः।।


दूसरे कितने ही योगीजन अपानवायुमें प्राणवायुको हवन करते हैं, वैसे 

ही अन्य योगीजन प्राणवायुमें अपानवायुको हवन करते हैं तथा अन्य कितने 

ही नियमित आहार करनेवाले प्राणायामपरायण पुरूष प्राण और अपानकी 

गतिको रोककर प्राणोंको प्राणोंमें ही हवन किया करते हैं। ये सभी साधक 

यज्ञोंद्वारा पापोंका नाश कर देनेवाले और यज्ञोंको जाननेवाले हैं।।4.29-30।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।