इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।

 श्री राधा


इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।


तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि।।


क्योंकि जैसे जलमें चलनेवाली नावको वायु हर लेती है, वैसे ही विषयोंमें 

विचरती हुई इन्द्रियोंमेंसे मन जिस इन्द्रियके साथ रहता है वह एक ही इन्द्रिय 

इस अयुक्त पुरूषकी बुध्दिको हर लेती है।।2.67।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।