निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।

 श्री राधा


निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।


शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किन्बिषम्।।


जिसका अन्तःकरण और इन्द्रियोंके सहित शरीर जीता हुआ है और 

जिसने समस्त भोगोंकी सामग्रीका परित्याग कर दिया है, ऐसा आशारहित 

पुरूष केवल शरीर-सम्बन्धी कर्म करता हुआ भी पापोंको नहीं प्राप्त होता।।

4.21।।


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