इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।

 श्री राधा


इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।


तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।


यज्ञके द्वारा बढ़ाये हुए देवता तुमलोगोंको बिना माँगे ही इच्छित भोग 

निश्चय ही देते रहेंगे। इस प्रकार उन देवताओंके द्वारा दिये हुए भोगोंको जो 

पुरूष उनको बिना दिये स्वयं भोगता है, वह चोर ही है।।3.12।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।