वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।

 श्री राधा


वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।


बहवो ज्ञानतपसा पूता मभ्दावमागताः।।


पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझमें 

अनन्य प्रेमपूर्वक स्थित रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहनेवाले बहुत-से भक्त 

उपर्युक्त ज्ञानरूप तपसे पवित्र होकर मेरे स्वरूपको प्राप्त हो चुके हैं।।4.10।।


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