श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुहृति।

 श्री राधा


श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुहृति।


शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियान्गिषु जुहृति।।


अन्य योगीजन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियोंको संयमरूप अग्नियोंमें हवन 

किया करते हैं और दूसरे योगीलोग शब्दादि समस्त विषयोंको इन्द्रियरूप 

अन्गियोंमें हवन किया करते हैं।।4.26।।


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