एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।

 श्री राधा


एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।


अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।


हे पार्थ! जो पुरूष इस लोकमें इस प्रकार परम्परासे प्रचलित सृष्टिचक्रके 

अनुकूल नहीं बरतता अर्थात् अपने कर्तव्यका पालन नहीं करता, वह

 इन्द्रियोंके द्वारा भोगोंमें रमण करनेवाला पापायु पुरूष व्यर्थ ही जीता है।।

3.16।।


Comments

Popular posts from this blog

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किच्ञन।

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।