एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।

 श्री राधा


एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।


कर्मजान्विध्दि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे।।


इसी प्रकार और भी बहुत तरहके यज्ञ वेदकी वाणीमें विस्तारसे कहे गये 

हैं। उन सबको तू मन, इन्द्रिय और शरीरकी क्रियाद्वारा सम्पन्न होनेवाले जान, 

इस प्रकार तत्वसे जानकर उनके अनुष्ठानद्वारा तू कर्मबन्धनसे सर्वथा मुक्त हो 

जायगा।।4.32।।


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