अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।

 श्री राधा


अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।


नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।


विवेकहीन और श्रध्दारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थसे अवश्य भ्रष्ट हो जाता 

है। ऐसे संशययुक्त मनुष्यके लिये न यह लोक है, न परलोक है और न सुख 

ही है।।4.40।।


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