योगसन्न्यस्तकर्माणं ज्ञानस´िछन्नसंषयम।

 श्री राधा


योगसन्न्यस्तकर्माणं ज्ञानस´िछन्नसंषयम।


आत्मवन्तं न कर्माणि निबन्धन्ति धनज्ञय।।


हे धनज्ञय जिसने कर्मयोगकी विधिसे समस्त कर्मोंका परमात्मामें अर्पण कर 

दिया है और जिसने विवेकद्वारा समस्त संशयोंका नाश कर दिया है, ऐसे वशमें 

किये हुए अन्तःकरणवाले पुरूषको कर्म नहीं बाँधते।। 4.41।।

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