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Showing posts from May, 2022

कौवाली: राम द्वारा सीता त्याग

काप गई धरती औ आसमान हाला, जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। राम ने कहा लखन जल्द रथ सजाओ तुम। सती सीता को ले जा उसमे बिठाओ तुम।। चलाओ रथ स्वयं तू इतनी दूर ले जाना। जहॉ कोई न हो जंगल हो बड़ा बीराना।। राज खुलने न पाये सीता से छुपाना है। बहाना करके कोई तुम्हें लौट आना है।। खटक रही बतिया पड़े दिल मे छाला।। जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। लखन कुछ कह ना सके जल्द रथ सजाया है। सती सीता को ले जा उसमे बिठाया है।। घोर जंगल मे गये रथ को रोक दीन्हा है। भोली भाली सिया कपट कुछ ना चीन्हा है।। सो गई सीता वहॉ पे घोर निशा जब आई। बनिके बेपीर लखन चल दिये मौका पाई।। लखन लाल भाई की बात नही टाला।। जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। नीद सीता की खुली रोेने लगी घबराकर। विलखती रोती थी अपने को अकेली पाकर।। हाय देवर लखन मुझको अकेली छोड़ चले। किसे अपना कहूँ तुम भी तो मुह को मोड़ चले।। दर्द दिल का कभी मै किसी से ना बताऊँगी। प्राण दे दूँगी जहर खा के मै मर जाऊँगी।। छुपा लूँगी चेहरा करूँगी मुह काला।। जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। शब्द राने का सुन के बाल्मीक आये हैं। उन्हे समझा बुझा के अपने साथ लाये हैं।। रहो तुम

श्री गणेश बन्दना

आवा महफिल मे हे गणपति बप्पा, आस मन से लगाये हुए है।। श्रद्धा के दो सुमन पग मे अर्पित, करने का मन बनाये हुए है।। आवा महफिल मे।। तुमको कहते गजानन सभी जन, कैथा जामुन अधिक है सुहाता।। कर मे त्रिशूल दुश्मन के खातिर, आप भगवन उठाये हुए है।। आवा महफिल मे।। शिव के नन्दन की महिमा निराली, होती पहले पहल इनकी पूजा।। भूत गण आदि देवो से पूजित, मूस को संग लिआये हुए है।। आवा महफिल मे।। रिद्धी सिद्धी के दाता हो स्वामी, कुछ दया भीख हमको भी दीजै।। आसा पूरण करो गौरी नन्दन, हम विनय को सुनाये हुए हैं।। आवा महफिल मे।। छाया अधियर बड़ा जिन्दगी में, कुछ कही ना दिखाता सहारा। आके तुम्हरी सरन आर0 के0 अब, शीश पग मे झुकाये हुए हैं।।  आवा महफिल मे हे गणपति बप्पा, आस मन से लगाये हुए है।।

श्री शनिदेव की महिमा

महिमा शनिदेव की कितनी बड़ी महान बा, जानत सकल जहान बा ना।। बन कर सूर्य देव के लाल, करते जग में बड़ा कमाल।। न्याय के देव कहाते कोई ना अन्जान बा।। जानत सकल जहान बा ना।। प्रभु जी चार भुजा है धारे, मइया छाया जी के प्यारे।। मुक्ता मणि का मुकुट बनाये प्रभु की शान बा।। जानत सकल जहान बा ना।। कर में कठिन त्रिसूल करारा, करते दुश्मन का संहारा।। इनके कार्य से बढ़ती भक्तो की है मान बा।। जानत सकल जहान बा ना।। आर0 के0 सबसे करे पुकार, बोलो शनि जी की जयकार।। करिये दूर छिपा जो मनवा मे अभिमान बा।। जानत सकल जहान बा ना।।

कृष्ण भक्तिन गोपी की दशा

तर्ज: श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने मे श्री श्याम राधिका बैठे रहे बगीचे में। देखे सखी सब इनको नगीचे से।। श्री श्याम राधिका बैठे रहे बगीचे में।। श्याम अपनी बसुरिया बजाने लगे। अपनी सारी सखी को बुलाने लगे।। आई सखी सब बगिया के बीच में।। श्री श्याम राधिका बैठे रहे बगीचे में।। एक गोपी के संग ग्वाला जबरी किया। रास लीला मे उसको न जाने दिया।। गोपी पति बन्धन से पड़ी सोच मे।। श्री श्याम राधिका बैठे रहे बगीचे में।। रास लीला मे जाने की जिद पर अड़ी। गोपी होकर के बेसुध पलंग पर पड़ी।। प्रेम पहुँचाया ऐसे नतीजे पे।। श्री श्याम राधिका बैठे रहे बगीचे में।। गोपी पति पास में तन को तजकर चली। आर0 के0 लिखते उसकी ए गाथा भली।। दुनिया दहले सदा इस हदीचे से।। श्री श्याम राधिका बैठे रहे बगीचे में।।

श्री गणेश बन्दना

तर्ज: करती हूँ मै तुम्हारा ब्रत मैं............. करता हूँ पग का बन्दन, स्वीकार करो स्वामी। कर जोर खड़ा हूँ दोनो, उद्धार करो स्वामी।। जयति जय गणपति बप्पा, जयति जय गणपति बप्पा।। पूजन करने के खातिर आया हूँ पास तुम्हारे। लेकिन श्रद्धा को तजकर कुछ ना है पास हमारे।। यह श्रद्धा सुमन हमारा सुम्मार करो स्वामी।। कर जोर खड़ा हूँ दोनो, उद्धार करो स्वामी।। जयति जय गणपति बप्पा, जयति जय गणपति बप्पा।। जय जग बन्दन उमा के नन्दन चन्दन शीश लगाते। लड्डू , पान, सुपाड़ी, नरियल तुमको सभी चढ़ाते।। भक्तो को बचाने खातिर पतवार धरो स्वामी।। कर जोर खड़ा हूँ दोनो, उद्धार करो स्वामी।। जयति जय गणपति बप्पा, जयति जय गणपति बप्पा।। देव दनुज औ मनुज आदि सब प्रभु को शीश झुकाते। मेवा मिश्री प्रभु को प्यारा उनको भोग लगाते।। सन्तो के सारे दुःख को जयछार करो स्वामी।।  कर जोर खड़ा हूँ दोनो, उद्धार करो स्वामी।। जयति जय गणपति बप्पा, जयति जय गणपति बप्पा।। कैथा जामुन प्यारा भोजन लम्बोदर को भाये। रिध्दि सिध्दि के दाता को सब प्रेम से शीश झुकाये।। दुश्मन के खातिर कर मे हथियार धरो स्वामी।। कर जोर खड़ा हूँ दोनो, उद्धार करो स्वामी।। जयति जय गणपति

गणेश बन्दना

गणपति बप्पा आइ पधारो, करूँ सदा सम्मान, जगत मे बनते आप महान।। जय दुःख भंजन उमा के नन्दन चन्दन शीश लगाते हैं। रिध्दि सिध्दि को संग मे लेकर भव दुःख दूर भगाते हो।। एकदन्त हो दयावन्त तुम जाने सकल जहान।। जगत मे बनते आप महान।। देव दनुज औ मनुज आदि सब प्रभु की गाथा गाते है। करके मूस सवारी जग मे अद्भुत शोभा पाते हैं। सन्तो के ऊपर है रहता प्रभु का सदा धियान।। जगत मे बनते आप महान।। कैथा जामुन भोग लगाकर जग सिरजन कहलाते हैं। पान सुपारी और नारियल का भी ग्रास बनाते हैं।। ऋषी सन्त औ मानव दानव लेते आप से ज्ञान।। जगत मे बनते आप महान।। मात पिता की सेवा करके पहले पूजे जाते हैं। शरण आप की जो भी आता, उसको गले लगाते हैं।। सदा आर0 के0 आप शरण मे करत रहे गुणगान।। जगत मे बनते आप महान।।

गणेश बन्दना

मै अपना सब कुछ भुलाइ हो, करूँ पग बन्दन स्वामी।। जय हो गणेश श्री शिव जी के प्यारे। भक्तो का जीवन है तुम्हारे सहारे।। मनवा में भक्ति दया जगाई हो।। करूँ पग बन्दन स्वामी।। लड्डू का भोग उमा नन्दन लगावे। पान फूल नरियल को सन्तन चढ़ावे।। दिलवा मे खुशिया बढ़ाइ हो।। करूँ पग बन्दन स्वामी।। दुश्मन बदे कर मे त्रिशूल धारे। ऋषी सन्त प्रभु जी की आरति उतारे।। घिअवा की बाती जलाइ हो।। करूँ पग बन्दन स्वामी।। आर0 के0 श्री प्रभु की महिमा सुनावे। स्वामी के पग रज को सर पर लगावे।। आकर के लगि जा सहाइ हो।। करूँ पग बन्दन स्वामी।।

गणेश बन्दना

तर्ज: पंख होति तो मै उड़ जाती नन्द बबा के द्वार, उमड़ घुमड़ मोरा नयना रोवे, बहे अश्रु की धार, लाल मोरा रोवत होइगो, ललन मोरो खेलत होइगो।। रिध्दि सिध्दि के दाता की मै नमन करू सौ बार, लड्डू का वह भोग लगाते, विघ्न करे जयछार, अजब है गणपति बप्पा, गजब है गणपति बप्पा।। प्रभु का नाम गजानन, शिव के लाल कहाये। गौरी नन्दन का शुभ चन्दन मस्तक बीच सुहाये।। दुश्मन का संहार करन को लिए त्रिसूली धार।। गजब है गणपति बप्पा।। नरियल पान सुपाड़ी प्रभु को सदा सुहाये। मेवा मिश्री आदि आदि से संतन भोग लगाये।। देव मनुज औ भूत आदि गण करे सदा सत्कार।। गजब है गणपति बप्पा।। ब्रम्हा विष्णू शिवदानी से आप बढ़ाई पायो। मात पिता की पूजा करके अपनी मान बढ़ायो।। इनका ही अनुशरण करने से सुधर जाये संसार।। गजब है गणपति बप्पा।। भोजन कैथा जामुन गज आनन को भाये। मंगल दायक के चरणो मे आर0 के0 शीश झुकाये।। सद्बुध्दि सब को देके करो आप उद्धार।। गजब है गणपति बप्पा, अजब है गणपति बप्पा।।

भजन पूर्वी: सीता हरण

बनि के मृग सोने का वह मारचि लुभवले बा, सीता को भरमउले बा ना।। आज्ञा रावन का वह पाई, जाके पंचवटी निअराई। सीता हरण हेतु वह माया को फइलउले बा।। सीता को भरमउले बा ना।। सीता जी बोली उस बार, लीजै इसकी खाल उतार। सुनि मारिच राम को निज पीछे दौड़उलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।। दिहले रघुबर बाण चलाई, तीर घुसा सीने मे जाई। आवा हाय लखन काहि वह मारिच बुलउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।। सीता जी सुनकर घबराई, लखन को हरि के पास पठाई। दसानन विप्र रूप आपन घात लगउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।। रावण जय जयकार मनाई, सीता भिक्षा लेके आई। लेबई बधी भीख ना धर्म दोष ठहरउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।। मइया धर्म हेतु घबराई, रेखा बाहर पाव बढ़ाई। रावण बाह पकड़ि के रथ के बीच बिठउलेबा।। सीता को भरमउले बा ना।। रावण चला है लंका ओर, आर0 के0 दुःख से गये झझोर। सुन्दर रूप जगत मे सब दिन नास करउले बा ।। सीता को भरमउले बा ना।।