कौवाली: राम द्वारा सीता त्याग
काप गई धरती औ आसमान हाला, जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। राम ने कहा लखन जल्द रथ सजाओ तुम। सती सीता को ले जा उसमे बिठाओ तुम।। चलाओ रथ स्वयं तू इतनी दूर ले जाना। जहॉ कोई न हो जंगल हो बड़ा बीराना।। राज खुलने न पाये सीता से छुपाना है। बहाना करके कोई तुम्हें लौट आना है।। खटक रही बतिया पड़े दिल मे छाला।। जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। लखन कुछ कह ना सके जल्द रथ सजाया है। सती सीता को ले जा उसमे बिठाया है।। घोर जंगल मे गये रथ को रोक दीन्हा है। भोली भाली सिया कपट कुछ ना चीन्हा है।। सो गई सीता वहॉ पे घोर निशा जब आई। बनिके बेपीर लखन चल दिये मौका पाई।। लखन लाल भाई की बात नही टाला।। जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। नीद सीता की खुली रोेने लगी घबराकर। विलखती रोती थी अपने को अकेली पाकर।। हाय देवर लखन मुझको अकेली छोड़ चले। किसे अपना कहूँ तुम भी तो मुह को मोड़ चले।। दर्द दिल का कभी मै किसी से ना बताऊँगी। प्राण दे दूँगी जहर खा के मै मर जाऊँगी।। छुपा लूँगी चेहरा करूँगी मुह काला।। जब रामचन्द्र सीता को घर से निकाला।। शब्द राने का सुन के बाल्मीक आये हैं। उन्हे समझा बुझा के अपने साथ लाये हैं।। रहो तुम