तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः।
श्री राधा तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः। छित्तवैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत।। इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन! तू हृदयमें स्थित इस अज्ञानजनित अपने संशयका विवेकज्ञानरूप तलवारद्वारा छेदन करके समत्वरूप कर्मयोगमें स्थित हो जा और युध्दके लिये खड़ा हो जा।। 4.42।।