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Showing posts from March, 2022

श्याम के विना गोपी की व्याकुलता ( फाग )

 श्याम के विना गोपी की व्याकुलता ( फाग ) आ जाओ नन्द के ललनवा तोहइ बिन ना मधुबनवा निक लागे।। राधा सहित जुटी सबही सहेली। पूछइ लगी एक एक से पहेली।। आये ना श्याम समनवा तोहइ विन ना।। बोली सखी एक माना बचनिया। भइली बा हमसे कवनउ नदनिया।। जिससे है रूठल मोहनवा तोहइ विनना।। दूजी कहइ चला चलिके मनाई। नाही तो समझो ना अपनी भलाई। मानिल्या हमरा कहनवा तोहइ विनना।। राधा श्याम की महिमा बताई। कहे आर0 के0 सब दीन्ही मुस्काई। नटवर का देखि अवनवा तोहइ विन ना। उलारा: आकर के श्याम (2) सब को किये सुखारी।।

निर्गुण

 निर्गुण लागे ना एकउ बहाना हो गोरिया, जइबू सजन घर एक दिनवा।। जवने दिना ओ संदेशवा पइहै। डोलिया उठावइ का दिनवा धरइहै।। सुनि के नही घबराना हो गोरिया जइबू।। लइके बरात जब द्वारे पे अइहै, तोहका लियाइ जाइ घर पहुचइहै।। मुश्किल जान बचाना हो गोरिया जइबू।। सथवा की तोहरी पाँच सहेलिया। विधि से बनाइ सुन्दर महलिया।। होइहै सभी बेगाना हो गोरिया जइबू।। नइहर का पाप पुण्य पुछिहै सजनवा। कहे आर0 के0 करबू बहनवा। तुमको पडे़ बताना हे गोरिया जइबू।। उलारा: सब को एक बार(2) पड़े बलम घर जाना।।

पन्ना का त्याग ( चौताल )

 पन्ना का त्याग ( चौताल ) चौ0: राणा सागा तजे परान, बहादुरशाह हुआ बलवान, शान मान बदे सैन सजाय, ना देर                लगाय।। दे0: रानी करनवती राखी पठाये, बीर हुमायूँ को भइया बनाये, अपुना चिता लगाये।। उड़ान: पन्ना दाई लइल्या तु हमरा ललनवा, सेवा करू जबतक रहइ परनवा।। लचारी: हुमायूँ का सुना विरतिया, विपक्षी लड़इया मेहरिया।।                चालिभा बहादुरशाह अपने भवनवा।                हुमायूँ  बनबीर का बनाये शसनवा।।                पाया वहि देश में बड़इया।। विपक्षी लड़इया में हारिगा।। चौ0: लेने उदय सिंह का प्राण, कर में लेके चला कृपाण, बनबीर महल बिच आय, न देर                     लगाय।। दे0: पन्ना की दासी महलिया में आये, दुष्ट बनबीर की नितिया सुनाये, पन्ना सुनत घबराई।। उड़ान: सोने की पलंगिया से उदै का हटाया, अपने ललनवा को वहि पे सुलाया। लचारी: पन्ना बनी जान की बचइया।। विपक्षी लड़इया मे हारिगा।।                मनवा के धीरज को पन्ना न खोइ। नाही धरनिया पे ऐसा है कोई।।                बने प्रभु रक्षा करइया।। विपक्षी लड़इया मे हारिगा।। चौ0: पहुँचकर बोला कड़ी जुबान, कहाँ है उदै सिंह नादान, जान छन ही मे दे

स्वर्ण लंका निमार्ण कथा ( बेलवरिया )

 स्वर्ण लंका निमार्ण कथा ( बेलवरिया ) शंकर भगवान, पार्वती संग लइके।। दोहा: हसि के बोली गउरा रानी, माना बात हमारी। मृत्यु लोक मे हमे घुमावा, कइके अभी तयारी। बे0: अरज सुनि लीजै, इच्छा मम पूरी कीजै। दुइनउ जन साथ, मृत्यु लोक मे आये। शंकर भोलेनाथ, गउरा का खूब घुमाये।। तब लगिगै थकान।। पार्वती संग लइके।। लचारी: पार्वती बोली बचनिया, दरद कुल बदनिया मे छाइ गये।।                प्रीतम कइल्या रहइ का ठिकाना।                समयानुकुल मिले, पानी औ दाना।।                ढंग से बिते जिन्दगनिया।। दरद कुल बदनिया में छाइ गये।। दोहा: सुन्दर भवन गिरजा के मन का बना दिये भगवान।           कहा कि गउरा महल के अन्दर अब तू करा पयान।। बे0: ध्यान नहि रखिये, संग हमरे सुख दुख सहिये।           बात शंकर की मान, गउरा कहिन बुझाई।           बुला पंडित महान, लीजै भवन पुजाई।।           है यहि अरमान।। पार्वती संग लइके।। लाचारी: गउरा की सुनिल्या नदनिया, दरद कुलि बदनिया में छाई गये।                रावण को शंकर जी तुरतइ बुलाये।                पुजा सुने लेकिन घरवा गवाये।।                दुखी भये दुइनउ परनिया।। दरद कुल

Reporting Verb

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Reported Speech

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एहसान

एहसान तो अमीर आदमी करते हैं। हम गरीब तो सिर्फ एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।।

राम का हनुमान को संदेश ( फाग )

 राम का हनुमान को संदेश ( फाग ) नहि हनुमत देर लगाओ सजीवन बूटी जल्द लियाओ।। भइया लखन लाल मुर्छित हुए है। कोई उपाय बताओ।। सजीवन बूटी।। बीच हिमालय पे बूटी बिराजे। दिल में ध्यान लगाओ।। सजीवन बूटी।। कइसे अयोध्या मे मुखड़ा दिखइबै। जल्दी प्राण बचाओ।। सजीवन बूटी।। आर0 के0 छोटा सा फाग सुनावे। सब जन मिलके गाओ।। सजीवन बूटी।। उलारा: हनुमत बलवान (2) चले सजीवन लेने।।

शबरी गृह गमन ( फाग )

 शबरी गृह गमन ( फाग ) शबरी के दुअरवा जाइ रहे, वही जूठी बइरिया खाइ रहे।। के हो बइरिया को मीठी बतावे। के हो पीछे बहाइ रहे।। वही जूठी बइरिया।। राम बइरिया को मीठी बतावे। लक्ष्मण पीछे बहाइ रहे।। वही जूठी बइरिया।। के हो शबरी को भक्ती बतावे। के हो ध्यान लगाइ रहे।। वही जूठी बइरिया।। राम जी शबरी को भक्ती बतावे। लक्ष्मण ध्यान लगाइ रहे।। वही जूठी बइरिया।। आर0 के0 इश्वर की माया ना जाने। शबरी को माया दिखाइ रहे।। वही जूठी बइरिया।। उलारा: शबरी से राम (2) अनुपम भक्ती बताये।।

कृष्ण भक्त गोपी की हाल ( फाग )

 कृष्ण भक्त गोपी की हाल ( फाग ) तन मन सब लेती चुराइ कधइया तोरी बांस की बसुरिया।। जब कान्धा बनवा में बसुरी बजाते। नर नारी सुनते ही मन से लुभाते।। जाते पास अकुलाइ कन्धइया तारी बास की।। एक ग्वाला बोला है नारी से अपने, काहे कधइया के तकती हो सपने।। दीजै उन्हे बिसराइ कधइया तारी बास की।। सन्ध्या समय कान्धा बसुरी बजाये। गोपी का जिया रहि रहि अकुलाये। पति को दीन्हा सुलाई कधइया तोरी बास की।। कहे आर0 के0 गोपी तनवा को तजिके। कीन्हा मिताइ कधइया से जमिके पति को पहुचकर जगाइ।। कधइया तोरी बास की।। उलारा: पाकर प्रभु प्यार (2) गोपी अमर पद पाई।।

नारी संदेश ( फाग )

 नारी संदेश ( फाग ) जीवन मे करो ना गुमनवा हे गोरी प्यारा सुगनवा उड़ि जइही।। होठो पे लाली औ मगिया सेधुरवा। दीन्हे दयानिधि जी सुन्दर सुहरवा।। कजरा लगाइउ नयनवा हे गोरी। प्यारा सुगनवा।। माथो मे बिदिया की शोभा निराली। नाको मे झुलनी है बनिके सवाली।। चाहत बा मुख चुम्बनवा हे गोरी।। प्यारा सुगनवा।। चोटी सुहाय कटि बनिके नगिनिया। सथवा ही लटके कमर करधनिया।। अनुपम जंजीर गरदनवा हे गोरी।। प्यारा सुगनवा।। कहे आर0 के0 होइहै जीवन सुखारी। जबही पिया की तू रहबू दुलारी।। छुटिहै ना पग का रगनवा हे गोरी।। प्यारा सुगनवा।। उलारा: तनम न को लगाई (2) करो प्रेम पियवा से।।

श्रृंगार वर्णन ( फाग )

 श्रृंगार वर्णन ( फाग ) लागे पवन का झकोरा रे झुलनी लहर लहर लहराये।। मस्तक बीच टिकुलिया सोहे। कजरा कटीला जिआ अति मोहे।। दिल नहि होय कठोरा रे झुलनी।। लहर लहर।। सुन्दर कपोल गोल होठो पे लाली। जैसे खिला हो गुलाब फूल डाली।। मुख छवि चन्द चकोरा रे झुलनी।। लहर लहर।। ताम्बूल मुख की शोभा बढ़ावे। दातो मे मिश्री की छवि सुहावे।। तिल काला जिआ मारे मोरा रे झुलनी।। लहर लहर।। मथवा के बिचवा मे सोहे सेधुरवा। पछुआ बयरिया में उड़ेला अचरवा। झलके तनिक तन गोरा रे झुलनी।। लहर लहर।। सोने औ चादी का अनुपम गहनवा, गोड़े मे सोहे गुलाबी रंगनवा। लागे ना भूषण का ओरा रे झुलनी।। लहर लहर।। हाथो मे मेहदी औ नाखून पालिस। देखिके करिहै ना आर0 के0 रंजिस। कोउ नहि किस्मत फोरा रे झुलनी।। लहर लहर।। उलारा: कइके श्रृंगार (2) काहे जिआ जलाऊँ।।

Direct Indirect Speech

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Direct Indirect of Assertive Sentence

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Direct Indirect of Imperative Sentence

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Direct Indirect of Exclamatory Sentence

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Shri Radha

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चरित्र प्रमाण - पत्र

 चरित्र प्रमाण - पत्र               मैं प्रमाणित करता हूँ कि श्री विजय कुमार यादव सुपुत्र शेषमणि यादव निवासी कौलापुर पो0 गौरा थाना फतनपुर जनपद प्रतापगढ़ को पिछले दो वर्षो से जानता हूँ, और मेरी अधिकतम जानकारी तथा विश्वास के अनुसार इनका चरित्र उत्तम है और इनके विरूध्द कोई विपरीत कार्य नहीं है जो कि सरकारी अथवा अन्य नौकरी के लिए अयोग्य ठहरायें। यह मेरा सम्बन्धी नही है। दिनांक:.........................                  (हस्ताक्षर व पद)

HOSPITAL CASH MEMO

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  PRAGYA HOSPITAL Prithviganj Raniganj Pratapgarh  Mo No 790512XXXX   Name: Dhanpatti                                     Date: 11/03/2022 Age: 55 Year / Female Fee: ………………………………..………200 Rs. Blood Test: …………………………….…2000 Rs. Admission Charge: ………………..………750 Rs. Medicine Charge: …………………...…...1800 Rs. X-Ray: …………………………………….400 Rs. Bed Charge: ……………..300 x 10 Days = 3000 Rs. Total Charge: ……………...………………8150 Rs. Discharge Date 20/03/2021                                                                           Doctor Signatory

जाल्पा की पति सेवा (चौताल)

  जाल्पा की पति सेवा (चौताल)                जाल्पा बहुतइ कष्ट उठाई, बन में हरि पर ध्यान लगाई,                सुनि विनय जगत पति आये, उदर हरषाये।। उड़ान: भोरही में उठत समनवा जा आये, वहिनर तोहरा सजनवा कहाये।। कहरवा: सुनिके प्रभुवर की बचनिया, खुशी भई सुन्दरी।।                अपने घर पे जाई जाल्पा सुख से रात बिताई।                भोर हुआ जब बाहर निकली एक कोढ़ी को पाई।।                चूमै कोढ़ी की चरनिया ।। खुशी भई सुन्दरी।। चौ0:      नभ से यही अवजिया आई, होतई भोर सजन मरि जाई,                घबराई के बहु चिल्लाय।। उदर हरषाय।। उड़ान:   मइया अनुसुइया बोली तुरतै समनवा, कइसे मरिजइहै बहन तोहरा सजनवा।। कहरवा: टेके अनुसुइया चरनिया, खुशी भइ सुन्दरी।।                नही सबेरा हुआ जभी तब ऋषी मुनी घबराये।                दीनानाथ की कैसी माया कहि कहि टेर लगाये।।                बोली गिरजा है बचनिया ।। खुशी भई सुन्दरी।। चौ0:      स्वामी अनुसिइया ढ़िग जाओ, उसके तन का शोक मिटाओ,                सुनि शिवदानी गये अकुलाये।। उदर हरषाये।। उड़ान: बोली अनुसुइया थामि प्रभु का चरनवा। काहे बदे बहिन पाये कोढ़िया सजनवा।

सुदामा की चोरी (चौताल)

 सुदामा की चोरी (चौताल)           नहि है अलाव माँ का सुझाव, श्री कृष्ण जी शीश झुकाये,            चले मित्र को संग लिवाये, हृदय हरषाय।। दे0: चलत देखि दोनो को बुलाई, भूना चना देकर समझाई,   जाकर वहा चबाना, अति शीघ्र लौट कर आना। कौ0: शीश दोनो जन झुकाकर, चल दिये बन बीच में। एक तरू पर जा चढ़े श्री कृष्ण जी बन बीच में।। उड़ान: तेहि छड़ आई, घिरि नभ में बदरिया। टप टप नीर चुवइ बहली बयरिया।। चौ0: लग गई ठंड सह दुःख प्रचंड, श्री दामा अति घबराये, पर कृष्ण जी खुशिया मनाये ।। हृदय हरषाये।। देढ़: बोले सुदामा सुनो बृज मोहन, लागी क्षुधा है करा दीजै भोजन,  मोहन कहे समझाई, चलो कुटिया मे भोजन कराई।। कौ0: इस तरह समझा उन्हे लकड़ी जुटाने मे लगे। मौका पाकर बिप्र जी चर्बन चबाने मे लगे।। उड़ान: पट पट शब्द सुनत ही कधइया। बोले कस चर्बन चाबत भइया।। चौ0: कह उठे बिप्र मत करो फिक्र, दांतो में कम्पन छाये,  ठंडक से जिया घबराये।। हृदय हरषाये।। दे0: देवकी लालन हसे सुनिके बयनवा, माया का राक्षस बनाय तहि छनवा, भेजे सुदामा पास, जाइ देने लगा है त्रास।। कौ0: देखि दानव को सुदामा बिप्र चिल्लाने लगे। उस तरफ तरू पर कधइया माय

Radhekrishna: जयद्रथ बध ( फाग )

Radhekrishna: जयद्रथ बध ( फाग ) :  जयद्रथ बध ( फाग ) किहले कौरव हुसियारी, तयारी रण की किये, धोखा दिये, व्यूह रचे, दिया खबरिया पांडव को।। अर्जुन का लाल गया रण के मझारी। धोखा स...

जयद्रथ बध ( फाग )

 जयद्रथ बध ( फाग ) किहले कौरव हुसियारी, तयारी रण की किये, धोखा दिये, व्यूह रचे, दिया खबरिया पांडव को।। अर्जुन का लाल गया रण के मझारी। धोखा से मारि उसे भुइया पे डारी।। जयद्रथ हुआ अत्याचारी।। तयारी रण की किये।। अभिमन्यु के सर पे रक्खा चरनिया। सुनते ही अर्जुन की जलिगै बदनिया।। कीन्हा प्रतिज्ञा भारी।। तयारी रण की किये।। सूर्यास्त से पहले जयद्रथ को मरबै। नाही तो अग्नी में जनवा गवउबै।। सूर्यास्त की भइली बारी।। तयारी रण की किये।। माया से काधा जी रवि को डुबाये। जयद्रथ आदि सब देखन को आये।। रवि देखे अर्जुन खरारी।। तयारी रण की किये।। सूरज को देखि तभी मारे है बनवा।  कहे आर0 के0 जयद्रथ छोड़े परनवा।। होइ गये सभी जन सुखारी।। तयारी रण की किये।। उलारा: अर्जन की लाज (2) बचालिये बनवारी।।

पूतना बध ( फाग )

 पूतना बध ( फाग ) कंसा से खबरिया ले करके।। पहुची है जा करके यशुदा दुअरिया। कान्धा को चुम्बन दे करके।। कंसा से खबरिया ले करके।। छतिया में अपने लगाई जहरवा। मइया को धोखा दे करके।। कंसा से खबरिया ले करके।। गोदिया में ले करके दुग्ध पिलाये। सबको सहारा दे करके।। कंसा से खबरिया ले करके।। उलारा: पूतना की जान (2) लिये कधइया तुरतइ।।

दिलीपस्य गो सेवा ( बेलवरिया )

 दिलीपस्य गो सेवा ( बेलवरिया )                     सहे कष्ट अपार, जंगल बीच मझारी।। दोहा: एक नृपति थे अवध राज में, नाम दिलीप सुहाये। बिना पुत्र के राजा रानी, के उर शोक समाये।। बे0:           जिया घबराये, यह हमरी राज नसाये। नहि है सन्तान, जीवन व्यर्थ हमारा। सोचइ धरि ध्यान, बन की ओर सिधारा।। गये गुरूवर के द्वार।। जंगल बीच मझारी।। बनारसी: नाही बाटे एकउठी ललनवन हो, जिया मोरा घबराय।।                     दुइनउ जन पूजइ लागे, गुरू की चरनिया।                     पुत्र बिना दुखी होइके, बोले हैं बचनिया।                     सुत बिना तरसे नयनवन हो।। जिया मोरा घबराय।।                     हमका ललन बिना जिन तरसावा।                     हमरी अजोधिया के लजिया बचावा।।                     नही दइ देबइ हम परनवन हो।। जिया मोरा घबराय।। दोहा: राजा का दिल दुःखी देखि के अरून्धती जी बोली। हे स्वामी जी ध्यान से देखा, ज्ञान केवरिया खोली।। बे0:           ललन एक दीजै, नृप की इच्छा पूरी कीजै। गुरू जी धरि ध्यान कहइ बात मोरि माना। होये पुत्र महान, उर अन्दर यह जाना। यह गइया की जान, जबइ बचइ

ईन्दल हरण ( फाग )

 ईन्दल हरण ( फाग ) मझला पति सम्मुख जाई, मनाई बारम्बार, भइली तैयार, गंगा किनार, मुंडन करावई लालन को।। देवर औ मामा जी सथवा मे जइहै। माँ जी का पूरा मगनवा करइहै। अउबै लौटि हरषाई।। मनाई बारम्बार।। आल्हा की आज्ञा से किहलिन पयनवा। पूर्ण किये माँ जी का सबहीं मगनवा।। उर अन्दर सुखपाई ।। मनाई बारम्बार।। एक जादूगरनी थी इन सबके बगली। नाम चित्रलेखा था अतिसुन्दर रहली। ईन्दल पे गइली लुभाई।। मनाई बारम्बार।। सबही को मूर्छित जदुइया से कइके। कहे आर0 के0 संग ईन्दल को लइके, अपने भवन रहिआई।। मनाई बारम्बार।। उलारा: अपने गृह जाई (2) सबको लगी रूलावई।।

कौवे का ससुराल जाना ( फाग )

 कौवे का ससुराल जाना ( फाग ) अति सुघर बसंत सुहाये, उधर कौवा ससुराल तकाये।। सुन्दर लगन में कीन्हा तयारी। देखि बरात हुआ कौवा सुखारी।। दिलवा में मोद बढ़ाये।। उधर कौवा।। तोता को पंडित की पदवा दिया है। नाउ बना चकवा का जिया है।। तीतिल शोर मचाये।। उधर कौवा।। मोर आदि सब बने बराती। कोयल किलहटी होइके घराती।। दुल्हन को खूब सजाये।। उधर कौवा।। होतई भोर हुई सबकी विदाई। फाग लिखे आर0 के0 हरषाई।। लौटी सभी घर आये।। उधर कौवा।। उलारा: दुलहिन को पाइ (2) कौ हुआ सुखारी।।

कंस जन्म ( बेलवरिया )

 कंस जन्म ( बेलवरिया )              कइके सिंगार, चली नार बगिया में।। दोहा: उग्रसेन की नारी एक दिन, सोलहौ किया सिंगार।             नाम पवनरेखा था जिसका, मन में किया विचार।। बे0: सखी संग जइबइ, वही कुन्ज मे दिल बहलउबइ। गई सखियन के साथ, बगिया बीच मझारी। खिला पुष्प हजार, देखि खुशी भइ नारी।।         बहे सुन्दर बयार।। चली नार बगिया में।। धुन:      सखी लुटबै हम अलगइ बहार लउटि तब चलबइ भवन।। दोहा:  द्रुमलिक नामक एक राक्षस था, शोभा निरखि लाभाया।                उग्रसेन का रूप पकड़कर तुरत सामने आया। बे0:      कहा तुम आओ, संग हमरे प्रेम बढ़ाओ।।                लिया उर से लगाई, इच्छा पूरी कीन्हा।                तजिरानी को पार, असली रूप धइलीन्हा।।                रही रानी निहार।। चली नार बगिया में।। धुन:      हटि जारे पापी नयनवा के अगवा से, नाही करउबइ बधनवा तोरा तब छूटि जइहै                    भवनवा।।                द्रमलिक रक्षसवा को खूब फटकारे।                रनिया की दशा देख द्रुमलिक पुकारे।।                देखी के बन्द तोहरा कोछवा हे रानी दइदीन्हा तोहके ललनवा।                तोरा दसवे महीना

सीता त्याग (बेलवरिया)

 सीता त्याग ( बेलवरिया )                       सुनिये चितलाय, लक्ष्मण की सेवकाई।। दोहाः           लंका जीत अवधपुर आये, आपन राज सम्हारे।                       गुप्तचरो को बुला राम जी, उनसे शब्द उचारे।। बे0:              सुनो मम बानी, पुर की करिये निगरानी।             कोई दुःखी गरीब, पड़े ना हमें दिखाई।।                       पुर का सब भेद, आके दीजै बताई।।                       जाओ हरषाय।। लक्षमण की सेवकाई।। कजली:      श्री राम जी माथा झुकाइ चले, भेषवा बनाइ चले ना।।                      घूमें पुर में चहुओर, मचा एक तरफ शोर।                     सुने शब्द सभी उधर अकुलाइ चले भेषवा बनाई चलेना।। दोहा:           एक धोबी अपने धोबिन को घर से दिया हटाई। घूमि घामि मैके से धोबिन, घर में फिर से आई।। बे0:              कहई हरषाई, मम ऊपर करो रिहाई।            धोबी रिसिआइ, कहइ राम ना होई।           सीता लइ आइ, अवगुण लिहेन छिपाई।।           कैसे कहि जाए।। लक्ष्मण की सेवकाई।। कजली:     दूत हाल सभी राम से बताइ रहे, लखड़ को बुलाइ रहे ना।।                     भइया सुनो लखड़ लाल, दीजै सिया को निकाल।   

हिरन द्वारा राजा दशरथ को श्राप (चौताल)

 हिरन द्वारा राजा दशरथ को श्राप (चौताल) हिरनी हिरन खुशी हो मनवा, करते आपस मे रतिदिनवा, नृप दशरथ कदम बढ़ाये, बैन ये सुनाये।। राधे: अति सुघर जोड़ियो को तककर राजन का दिल हरषाया है। सोचा इनको ले चलूँ मार, यह उनके दिल में आया है।। उड़ान: अइसन सोचि कर में धनुष उठाये निरपती। तीर तरकस की वहि पर चढ़ाये भूपति।। चौ0: झाणी बीच नजर को डाले, ध्यान में आये जोड़ी वाले, तभी दशरथ बाण चलाये।। बैन ये सुनाये।। राधे: वह बाण धनुष से जाकरके, हिरनी को तुरत गिराया है। यह दशा देखकर हिरन वहाँ, ब्याकुल हो रूदन मचाया है।। उड़ान: जइसे सोचे नृप चलिके उठाऊँ उसको। जाए महलो में अपने दिखाऊँ उसका।। चौ0: भूप को अपने निरखि समनवा, बोला मरिगै मोर जननवा, यह कहकर श्राप सुनाये।। बैन ये सुनाये।। राधे: जैसे हीर तुम मेरे सुख में, दुख देकर मुझे रूलाये हो। हो जावो नपुंसक उसी तरह, करणी का फल तुम पाये हो।। उड़ान: श्राप सुनिके राजा दशरथ दुखारी होइ गये। चौथे पन में पुत्र पाइके सुखारी होइ गये।। चौ0: कहते आर0 के अति हरषाई, गुरू पगरज को शीश चढ़ाई, रहे भूप अवध निअराये।। बरणि नहि जाये।। उलारा: वही बन के मझार (2) भूप गये सरमाई।।