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Showing posts from April, 2022

सोने के अण्डे वाला हंश

एक दिन एक किसान ने देखा कि नए हंश ने एक सुनहरे रंग का अंडा दिया है। वह अंडा बहुत चमक रहा था। किसान ने अंडा उठा लिया। वह बहुत भारी था। उसे लगा कि किसी ने उसके साथ भद्दा मजाक किया है। फिर वह अंडे को लेकर अपनी पत्नी के पास गया। पत्नी अंडे को देखकर आश्चर्यचकित होती हुई बोली, ’’अरे, यह तो सोने का अंडा है, तुम्हें कहाँ से मिला?’’ प्रतिदिन सुबह अब किसान को एक सुनहरा अंडा मिलने लगा। अंडे बेचकर शीघ्र ही किसान दम्पत्ति धनवान हो गए। धन के साथ-साथ लालच ने भी आ घेरा। एक दिन उसकी पत्नी ने कहा,’’क्यों न हम हंश को मार दें हमें सारे अंडे एक दिन में मिल जाएंगे। हम बहुत अमीर भी हो जाएंगे’’ किसान को पत्नी की बात सही लगी। उन्होंने हंश को मार डाला पर उन्हें अंडे मिले ही नहीं। बेचारे हंश को भी मार डाला और कुछ हाथ भी न लगा। अब उनके पास पछताने के अलावा कोई चारा न था। शिक्षा: लालच बुरी बला है।

भजन: शिव विवाह

भोला चले ससुराल हो, देखि कापैं परनवा।। दूल्हा के अजब सिंगार हो, देखि कापै परनवा।। भूत प्रेत सब बने बराती। बसहा बैल पे सवार हो।। देखि कापै परनवा।। कानो मे बिच्छू का कुण्डल सुहाये। जटा बीच गंगा की धार हो।। देखि कापै परनवा।। गरदन बीच नाग करे फुफकारी। नाचे योगिनिया हजार हो।। देखि कापै परनवा।। बाघम्बर कटि बीच शिवदानी बाधे। डमरू बजाये बार बार हो।। देखि कापै परनवा।। आर0 के0 नही शिव की माया को जाने। जो कि है अगम अपार हो।। देखि कापै परनवा।।

गजल: कृष्ण आहवान

तेरे दर्शन की मोहन मै तमन्ना लेके आया हूँ। आपके पावन चरणो का पुजारी बन के आया हूँ।। अधम के नाथ कहलाते तो सरनामी अधम हूँ मै। ना जानू योग तप पूजा अनारी बन के आया हूँ।। तेरे दर्शन।। विनय भक्तो की सुनकरके कष्ट उनका मिटाये हो। दया की भीख लेने को भिखारी बन के आया हो।। तेरे दर्शन।। सुना है गीध गणिका औ अजामिल को आप तारे। मुझे भी तार दो गिरधर, सहारा लेने आया हूँ।। तेरे दर्शन।। बड़ा हूँ मै पतित प्रभु तुम पतित पावन कहाते हो। विनय प्रभु आर0 के0 करता दुखारी बन के आया हूँ।। तेरे दर्शन की मोहन मै तमन्ना लेके आया हूँ।

गजल: ईश्वर की महिमा

भगवान एक तुम्ही हो विपदा हटाने वाले।। दूजा कोई नही है मुक्ती दिलाने वाले।। राजा हो या भिखारी सब पर नजर तुम्हारी। छोटे बड़े सभी मे तुमही समाने वाले।। भगवान एक तुम्ही ।। सारे जहाँ मे हरदम चलते तेरे इसारे। संसार रूपी नइया तुमही चलाने वाले।। भगवान एक तुम्ही ।। जो भूल कर है बैठा महिमा तुम्हारी ईश्वर। उसको भी इस जहाँ से तुम ही छुड़ाने वाले।। भगवान एक तुम्ही ।। जब ग्राह गज को पकड़ा तुमने उसे बचाया। जीवन मरण का बन्धन तुम ही छुड़ाने वाले।। भगवान एक तुम्ही ।। आया शरण तुम्हारी अब दास आर0 के0 है। लीजै उबार स्वामी पावन कहाने वाले।। भगवान एक तुम्ही हो विपदा हटाने वाले।।

कजली: वसुदेव का बारात जाना

श्री वसुदेव लइके बरात चले, मन मे हर्षात चले ना।। पहुचि कंस के दुआर, गावे सभी मंगल चार। हुई शादी युगल जोड़ी संग सुहात चले।। मन मे हर्षात चले ना।। छाये खुशिया अपार, करे सभी जेवनार। हुई सुबह विदा करने की बात चले।। मन मे हर्षात चले ना।। कंस रथ को सजाय, अपनी बहन को बिठाय। रथ हाकइ स्वयं लगाकर के घात चले।। मन मे हर्षात चले ना।। हुआ गगन पथ से शोर, बैरी होगा भैने तोर। कंस देवकी को मारइ तत्काल चले।। मन मे हर्षात चले ना।। श्री वसुदेव लइके बरात चले, मन मे हर्षात चले ना।।

कजली: कंस वसुदेव वार्तालाप

अपने मन मे विचार, कइके कंस बार बार, गया पहुचि वासुदेव की दुअरिया ना।। गले मिले दोनो जन, बोला कंस है वचन। मानो रिश्ता करब तोहरी खातिदरिया ना।। गया पहुचि वासुदेव की दुअरिया ना।। हाथ बहन का हमारे, कर मे लीजै आप प्यारे। सुन्दर जोड़ी सोहै अनुपम बखरिया ना।। गया पहुचि वासुदेव की दुअरिया ना।। सुनि के कंश की ये बात, बोले सुन्दर बड़ा नात। अइबइ दुल्हा बनिके तोहरी हम नगरिया ना।। गया पहुचि वासुदेव की दुअरिया ना।। खुशी आर0 के0 मनावे, कंस महल बीच आवे। चले दुइनउ ओर प्रेम की बयरिया ना।। गया पहुचि वासुदेव की दुअरिया ना।।

कजली: धर्म संदेश

आवा मिलिजुलि सजावा परिवार यार, कइके जयकार यार ना।। गन्दे चित्र ना लगाओ, मान माँ की ना घटाओ। पाओ जग जननी भू माँ से प्यार यार।। कइके जयकार यार ना।। नर औ नारी एक समान, लीजै इस भू अन्दर मान। नारा यह कइद्या देश मे साकार यार।। कइके जयकार यार ना।। रखो धर्म औ इमान, झूमै प्रेम से जहान। युग बदल डालो होइके तइयार यार।। कइके जयकार यार ना।। पंडित श्री राम आये, अमिय प्रेम का बहाये। कहे आर0 के0 ल्या जीवन सुधार यार।। कइके जयकार यार ना।।

कजली: फैशन से बरबादी

  सब का ई फैशन किये बा बेकार यार, दुःखी संसार यार ना ।। ब्लाउज चोटी कट सिलावे, तार स्वर्ण का खिचावे। चमके चम चमाचम चोली ऊपर तार यार।। दुःखी संसार यार ना ।। उल्टा पल्ला साड़ी सजके, घूँघट काढ़े चेहरा झलके। देखि दशा अइसन संस्कृति लचार यार।। दुःखी संसार यार ना ।। अब के लौडे रंग रूट, पहिने बैगी कट सूट। हेयर हैपी कट है फैशन की बहार यार।। दुःखी संसार यार ना ।। गावे मग मे फिल्मी गाना, इनका नाही धरम बचाना। कहते आर0 के0 ना बनो तुम गवार यार।। दुःखी संसार यार ना ।। सब का ई फैशन किये बा बेकार यार, दुःखी संसार यार ना ।।

कजली: इलाहाबाद वर्णन

गोरिया फिकर करहु नहि मनवा, चलबइ शहर इलाहाबाद।। करबइ साधन मोटरकार, पहुचब झूँसी बीच मझार। आगे गंगा जी का किनार, पग छू नाव से उतरब पार।। दारागंज पहुचि वहि छनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।। आटो रिक्शा पर बइठाके, बिरला मन्दिर तक पहुँचा के। फिर हनुमान का दर्स कराके, किला के अन्दर तुम्हे घुमा के।। पहुचे संगम मे यह तनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।। नाव से चलबइ अरइल ओर, देखब नैनी जेल का कोर। पहुचब जमुना पुल के छोर, पैदल घूमब चारउ ओर।। खाके बहादुरगंज मे पनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।। चौक मे सुन्दर बिसात खाना, होटल मे है रात बिताना। खाबइ लोकनाथ मे खाना, सब समान ले होब रवाना।। भोर मे उठबइ दुइनउ जनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।। अउबइ जहाँ अलोपिन माई, पग छू कर के देब दुहाई। फिर कम्पनी बाग मे जाई, सगरउ शहर मे देब घुमाई।। कटरा चौराहे पे धियनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।। जाकर नेत राम के द्वार, खिला मिठाई करबइ प्यार। लउटि के अउबइ घर उसवार, मागे आर0 के0 हाथ पसार।। दइद्या सरस्वती जी ज्ञनवा।। चलबइ शहर इलाहाबाद।। गोरिया।।

कजली: प्रयाग वर्णन

पियवा चलि के हमइ दिखावा, शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। शास्त्री पुल के इधरइ रूकिके, देखा कूप समुद्र का झुकिके। पास मे कुटी एक है लुकिके, जिसे बखानइ सब जन रूचि के।। वहॉ से नीचे उतरि के आवा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। आगे मिलइ त्रिवेणी गंगा, बरदायिनी ना तनिकउ शंका। संगम मे होइहै मन चंगा, हनुमत बीर बली रणबंका।। बगलइ किला का ध्यान लगावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।। मात अलोपिन का शुभ दर्शन, कइके हर्षित होइहै यह मन। फिर आनन्द भवन को अखियन, करिहै भरद्वाज का दर्शन।। युनिवरसिटी की शान बढ़ावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।। रिक्शा चढ़ि के कचेहरी चलबई, हाथी पार्क मे मन बहलउबइ। सुघर कम्पनी बाग मे घुमबइ, फिर हनुमान को शीश झुकउबइ।। गिरिजा मन्दिर अति मन भावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।। हाईकोर्ट दिखावा हसिके, खुशरो बाग प्रेम मे फसिके। हथवा पकड़ि हमारा कसिके, पहुचा जहाँ भीड़ है ठसिके।। चौक मे घण्टा घर दरसावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।। बारह खम्भा है मशहूर, जमुना का पुल तकब जरूर। आर0 के0 कहते तजि मगरूर, फाफामऊ मे आइ हजूर। कर्जन पुल तक संग निभावा।। शहर प्रयाग बसइ जहवाँ।। पियवा।।

कजली: मान सिंह राठौर

किया सलामत खा ने मिताई, ठाकुर मान सिंह के संग।। खाते पीते संग निभावे, गली गली मे नाम कमावे। घर मे बइठि के मउज उड़ावे, चक्कर विधि का खेल दिखावे। छलिया चाहा धर्म नसाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।। जानो मित्र सलामत खान, झट से मेरी कर पहचान। टले ना हारी कभी जुबान, ठाकुर की यह निति पुरान।। डर कर दुश्मन देत दुहाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।। ढ़ाढ़स दिल मे सलामत लाया, तेहि छड़ मान से अर्ज सुनाया। थाही मन है मोर लुभाया, दे दो अमर सिंह की जाया।। धक्का दिल मे दिया लगाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।। नाही मान किया इनकार, पास लड़की के जाए उस बार। फौरन उसको कर तइयार, बरात बुलाया निज दरबार।। भइल बिदाई मे जदुआई।। ठाकुर मान सिंह के संग।। मारो खीचि के हमइ कटार, यह बाला ने किया पुकार। राम जी रखिहै धर्म हमार, लाज बचै कुल की इस बार।। वहि कामी से होइ जुदाई।। ठाकुर मान सिंह के संग।। शीश पर तेगा दिया चलाई, सहज ही लीन्हा धर्म बचाइ। हसि के आर0 के0 कर कविताई, क्षत्रिय मान ने किया विदाई।। त्रसित सलामत घर निअराई।।  ठाकुर मान सिंह के संग।। किया सलामत खा ने मिताई, ठाकुर मान सिंह के संग।।

तेरे बिना दिलदार हाय मेरा दिल नहि लगता

तेरे बिना तेरे बिना तेरे बिना दिलदार। हाय मेरा दिल नहि लगता। तेरे बिन दिल नहि लगता। हाय मेरा दिल नहि लगता।। 4।। तेरे बिना दिलदार। हाय मेरा दिल नहि लगता। हाय मेरा दिल नहि लगता। हाय मेरा दिल नहि लगता।। 4।। हो स्वपनो में आने वाले, निदिया उड़ाने वाले। मुझको तड़पाने वाले, रातो जगाने वाले।। हो स्वपनो में आने वाले, निदिया उड़ाने वाले। सॉवरिया सरकार तेर बिन दिल नहि लगता। तेरे बिन दिल नहि लगता।। हाय मेरा दिल नहि लगता।। 4।। हो दरसन को अखियाँ प्यासी, दरसन दो झलक जरा सी। दरसन करूँ अभिलाषी, सुन लो ओ घट घट वासी। दरसन को आँखे प्यासी, दिखला दो छटा जरा सी। सुन लो मेरी पुकार, तेर बिन दिल नहि लगता। तेरे बिन दिल नहि लगता।। हाय मेरा दिल नहि लगता।। 4।। हो मोहन मुरलीय वाले, जीवन है तेरे हवाले। सुन ले मेरे दर्दे हाले, मुझको भी गले लगाले। हो मोहन मुरली वाले, जीवन है तेरे हवाले। तड़पे मेरा प्यार, तेर बिन दिल नहि लगता। तेरे बिन दिल नहि लगता।। हाय मेरा दिल नहि लगता।। 4।। छुप गये कहॅ प्राण पियारे, भक्तो के नैनन तारे। तेरे बिन नैन बिचारे, तड़पे दिन रात हमारे। छुप गये कहॅ प्राण पियारे, भक्तो के नैनन तारे। ओ पागल के यार,

कजली: पक्षी का नाम

कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।। खजन शरद ऋतु मे आवत, गेर्रा जल मे कला दिखावत। घाघर पक्षी अति मन भावत , चकवा चकवी शोर मचावत।। छंगुर जल मे कला दिखावे।। माह बसन्त मझारी ना।। कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।। जूही जल मे ही सुःख पावइ, झुर्री उसका संघ निभावइ। टेकवा के मन को जल भावइ, ठब्बी इसका मन सरमावाइ।। डेरई रूप् रंग मे ।। माह बसन्त मझारी ना।। कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।। ढे़कुची पकड़ ना कोइ पाता, तोता राम राम रट लाता। थीहर जान बूझ इठलाता, देबुही प्यार के शब्द सुनाता।। धनेष पीड़ा को हर लावे ।। माह बसन्त मझारी ना।। कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।। नकटा खाने मे प्रिय लागे, पोरिस बड़े तेज से भागे। फेकुही रूप ईश से मागे, बगुला बत्तख का दिन जागे।। भेलख मन मन गीत सुनावे।। माह बसन्त मझारी ना।। कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।। मैना मोर लोग सब पालइ, यमिका बच्चन पर दुःख डारई। रेघनी मन मस्ती से हालइ, लेदी जल को देखइ भालइ।। वरूही हर पल ज्ञान सिखावे।। माह बसन्त मझारी ना।। कोयल कूँ कूँ शब्द सुनावे, माह बसन्त बझारी ना।। सुभीखा सबही लो

कजली: घटोत्कच जन्म

कोरव हुए बडे़ उत्पाती, दिये हाराई पाण्डव को।। खेलत पाण्डव चले शिकार, गये पहुच बन बीच मझार। घेरे घटा रही उस बार, चारउ ओर हुआ अधियार।। छलिया बना हिडिम्ब निपाती, दिया डराई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।। जाकर बहना मास लिआओ, झरने का जल शुध्द पिलाओ। टहरत उन पॉचो ढ़िग जाओ, ठीक समय पर अर्ज निभाओ।। डरती हुई हिडिम्बा बतिया, सभी सुनाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।। ढ़ाढस दिल मे रख उस बार, तुरतइ भीम से कइली प्यार। थामे बदन देखि हुशियार, दइके गाली तुरत हजार।। धक्का भारी भीम के तन मे, दिया लगाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।। नफरत दिल मे भीम बढ़ाय, पापी का तन लिया उठाइ। फिर से मुष्टिक एक जमाय, बहिया तोड़ के दिया गिराइ।। भागई लगा वहाँ से पापी, देत दुहाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।। मग हटने की लिया तकाय, यहि पर भीम जी क्रोध बढ़ाय। रगड़ा राक्षस को हर्षाय, लीन्ह हिडिम्बा सुत जन्माय।। वहीं घटोत्कच नाम कहाकर, दिया बढ़ाई पाण्डव को।। कोरव हुए बडे़ उत्पाती।। शीतल हवा रूकी उस बार, सहते पाण्डव कष्ट अपार। हसते आर0 के0 यह इजहार, क्षत्रिय गीत करे तइयार।। त्रैलोकी प्रभु फिर से शासन, दिया थमाई पाण्डव

कजली: धोबी का ताना

कहे धोबिया धोबिनिया अगार सुना, हमरी पुकार सुना ना।। खासी किहले पिटाई, गहे कर मे कलाई। घर से देबई निकारी छिनार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। चट से बोली लुगाई, छल से करब ना ढ़िठाई। जइबइ अपने नइहरवा मझार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। झट से धोबिया पुकारे टलि जा नैन से हमारे। ठेस अइसन लगइबइ करार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। डाह धोबिया बढ़ाये, ढ़ोग नारी रचाये। तड़के चलि भइली भइया दुआर सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। थामि चलली डगर, दिखि नइहर नगर। धरि मनवा मे धइके इस बार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। नही नइया हमार, पार लगिहै किनार। फिर ऊँ बिचवा मे होये बेकार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। बतिया बूझत जब नार, भई घर को तइयार।। महल अन्दर मे पहुची जब नार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। यहॉ नही है ठेकान, राम मै हूँ ना जान। लाके लंका से रक्खे जो नार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। वहाँ सुनकर जो आय, शीश राम से झुकाय। सारी बतिया बताया उस बार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।। हाल रामचन्द्र जान, क्षत्रिय धर्म को पहचान। त्रसित आर0 के0 सुनावे इस बार सुना।। हमरी पुकार सुनाना।।

कजली: कृष्ण द्वारा माता को लीला दिखाना

काधा एक दिन अपनी माया रहे दिखाई माता को।। खाते मिट्टी कृष्ण कन्हाई, गई वहॉ एक ग्वालिन आई। घूमि के पास गई निअराई, चट से कृष्ण पे ध्यान लगाई।। छल से कृष्ण जी अपनी काया, रहे दिखाई माता को।। काधा।। जल्द से लौटी छोड़ि कन्हाई, झारन दिल की मैल ना पाई। टेकत चरण मात सन जाई, ठीक से सुनहु यशोमति माई।। डर लागे अति कृष्ण की माया।। रहे दिखाई माता को।। काधा।। ढं़ग से मिट्टी खात ललनवा, तोहरा उस पर नही धियनवा। थामि के कर को लाई समनवा, देखि के पूछै लगी मयनवा।। धीरज रखकर मुख को काधा।। रहे दिखाई माता को।। काधा।। ना अब हमसे झूठ तू बोल, पट से अपने मुख को खोल। फौरन माता का दुःख तौल, बोलत बचन कृष्ण अनमोल।। भूमंडल मुख के अन्दर प्रभु रहे दिखाई माता को।। काधा।। मात यशोदा विश्मित भइली, यह संसार उदर मे पइली। राज समझ प्रभु पग को धइली, लौटि संग काधा के अइली।। जहॉ से आई चरित सत्कर्म का रहे बताई माता को।। काधा।। शीश पर मोर मुकुट अति सोहे, षटयंत्रिन की रहिया जोहै। साजन बनि राधा मन मोहे, हसते आर0 के0 रहिया जोहे।।  क्षण मे हरि भक्तन की काया रहे दिखाई माता को।। ,काधा एक दिन अपनी माया रहे दिखाई माता को।।

कजली: कृष्ण लीला

बसिया राहे से बजावा, काधा रसिया हो लहरी।। वंशी की अवजिया सुनली गोकुला गुजरिया पहिने धारी चुनरी। सिर पर दहिया के कमोरिया मगिया मोतियन से भरी।। बसिया राहे।। वंशी की अवजिया सुनली गोकुला गुजरिया पहिने लाली चुनरी। हथवा सोनवा के कंगनवा पोरवा पोरवा मुदरी।। बसिया राहे।। वंशी की अवजिया सुनली गोकुला गुजरिया, पहिरे नथिया झुलनी। नेहिया काधा से लगवली, धइके बन की डगरी।। बसिया राहे।। रास्ते से मिलि गये यदुराई दौड़ि के पकड़ी लिये कलाई, ओढ़े काली कमरी। कहते आर0 के0 हसिके गावा कहि जा राधा गुजरी।। बसिया राहे से बजावा, काधा रसिया हो लहरी।।

कजली: चक्रब्यूह रचना

कइले द्रोण गुरू तइयारी, चक्रब्यूह की रचना।। खासा ब्यूह गुरू द्रोण रचाई, ज्ञान बुध्दि आपन फेलाई। घेरा चारो तरफ लगाई, चार कोस की रही चौड़ाई।। छलकर फाटक सात लगाई।। कह लम्बाई केतना।। कइले।। जगह जगह बैठे धनुधारी, झंझट करने की तइयारी। टरना नहि गुरू द्रोण तिखरी, गढ़ भये लिक बीच मझारी।। डटि गये पहिले पर जयद्रथ कमर कसिके अपना।। कइले।। ढ़िढ़ाई द्रोण गुरू अति कीन्हा, तब तो स्वर्ग हाथ मे लीन्हा। थे हुशियार कोई ना चीन्हा, दुसरे फाटक पर मन दीन्हा।। धनुष औ बाण को ले ललकोर, कहते रण से ना हटना।। कइले।। निरखत रहे कर्ण जी सर, प्यारे तिसरे पर बेडर। फरके भुजा संग लश्कर, बाण चलावइ एक नम्बर।। भारी कृपाचार्य जी का मन, चौथे फाटक पर रहना।। कइले।। मानो द्रोण पुत्र रणबंका, यारो दे पचवे पर डंका। राखइ दिल मे जरा ना शंका, लड़िहइ बीर बहादुर वंका।। वहि छटवे फाटक की बारी, जोहत भीष्म जी है कहना।। कइले।। सतवे फाटक पर दुर्योधन, खुश होकर के रहे मगन। सौ भाइन का कर के मोहन, हरि गुण गाओ मिलि सब ही जन।। आर0 के0 आपन कलम बढ़ावा, दुश्मन से  तुमको सटना।।  

कजली: नाग नाथन

कूदे कालीदह कधइया, किये हुसियारी पानी मे।। खेलत गेद कृष्ण कन्हाई, गिरिगा गेद जमुना मे जाई। घबराते कृष्ण कन्हाई, चहुदिसि चितइ रहे यदुराई।। छन मे जाइके कुदले काधा।। जल मझारी पानी मे।। जब जल मे कूदे नन्ददुलार, झट पहुचे नागिन के द्वार। टिके वहां फिर किये विचार, ठाट से चौमुख रहे निहार।। डाटि के नागिन कहती सुनिल्या मोर बचनिया पानी मे।। ढं़ग से नागिन कह समझाई, तीरे तुरत निकल तूँ जाई। थ थर मत कर कृष्ण कन्हाई, देबइ जब हम नाग जगाई।। धइके काटी लेइही तोहका।। जल मझारी पानी मे।। नागिन का जब सुने बयनवा, पट हसि बोले नन्द ललनवा। फौरन माना मोर कहनवा, बादिश खड़ा करब तोहि छनवा।। भागब नाही नगिन सनिल्या मोरि बचनिया पानी मे।। मन मोहन जब शुजा उठाये, यहि छन नाग नाथ लइ आये। रो रो नागिन कहे समझाई, लिहले नाग को नाथ कन्हाई।। वहिछन मानेस दुश्मन प्रभु से अपनी हारी पानी मे।। शेषनाग की महिमा खोई, षडयन्ती सब का था जोई। सब जन खुशिया लगे मनावइ, हसि के आर0 के0 गीत सुनावई।। क्षण मे नन्द बबा कान्धा को गले लगावे पानी मे।।

कहरवा: राष्ट्रीय गीत

हमरे देशवा के जवनवा, अमर होइ गये।। भारत माँ की अंग्रजो ने बहुत किया बरबादी। हाहाकार मचा चहुओरी, दीजै हमे अजादी।। दो दल बना देश दरम्यनवा।। अमर होइ गये।। एक युवक बना गरम दल दूजा बापू गाधी। सत्य अहिंसा और प्रेम की आई जग मे आधी।। बोले चन्द्रशेखर जवनवा।। अमर होइ गये।। बढ़ो जवानो मारो दुश्मन, लेकर अपनी टोली। सुनते ही सब उमड़ पड़े है खेले खून की होली।। सर पर बाधी के कफनवा।। अमर होइ गये।। परम पूज्य बापू आन्दोलन, सत्याग्रह अपनाये। अंग्रेजो को भगा यहाँ से भारत मुक्त कराये।। किहले सब का पूर्ण सपनवा।। अमर होइ गये।। इन सब का बलिदान त्याग ना भारत वासी जानइ। झूठि बालि रिश्वत खोरी से देश नरक मे डालइ।। आर0 के0 लिखते यह तरनवा।। अमर होइ गये।।

कजली: हिजड़ा को राधा का फटकारना

करत कुलेल श्याम संग राधा, हिजड़ा पइले खबरिया ना।। खासा लिहले रूप बनाई, गइल्या जमुना तट निअराई। घबरा सर पर मटकी बाधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। चट से किया जल मे प्रवेश, छल राधा का दिया कलेष। जाकर सर जल मे कर आधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। झटपट कुन्ज की ओर निहारे, टहरत राधा नन्द दुलारे। ठीक समय उर छाई बाधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। डटि के मोहन कहे पुकार, ढ़ोंगी ढ़ोंग रचा इस बार। ताहि समय बोली हैं राधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। थामे चरण तके यदुराई, दीन्हे राधा को समुझाई। ध्यान से नजर नदी तट साधा। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। नहि है जल मे मटकी कोई, पिअवा हिजड़ा तुम्हारा जोई। फसि के प्रेम करत है आधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। वस मे तुम्हरे हमरा तनवा, भावे तुम बिन कुछ ना मनवा। मोहन कर में कंकण साधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।। यहि छण आर0 के0 गीत सुनावे, राधा हिजड़ा को गरिआवे। लाये राधा को घर काधा।। हिजड़ा पइले खबरिया ना।।

दादरा: राधा जी द्वारा कान्हा जी को खिझाना

शैर: जल भरने राधा चली सखियन संग लिवाय। मउज लेत काधा भी वहिपर तुरतइ पहुचे जाय।। राधा जी वंशी चुराकर सब के संग हसने लगी। कुछ ही पल मे क्रुध्द हो काधा से यु कहने लगी।। अहिरऊ हो हमइ काहे दिहे गारी।। तुम तो ढ़ोटा नन्द बबा के। मै बृषभान दुलारी।। अहिरऊ हो हमइ काहे दिहे गारी।। तुम हो गोकुल गाव के वासी। मैं बृज की हूँ नारी।। अहिरऊ हो हमइ काहे दिहे गारी।। तोहरी तो है कारी बदनिया। गोरी बदन बा हमारी।। अहिरऊ हो हमइ काहे दिहे गारी।। इतना सुन श्री कुष्ण रिसाकर। अपनी राह सिधारी।। अहिरऊ हो हमइ काहे दिहे गारी।। आर0 के0 कहे राधा श्याम को मनाकर। नाचे बजाकर तारी।। अहिरऊ हो हमइ काहे दिहे गारी।।

नटका: सुतीक्षण की हरि भक्ति

ना जाने कौने गलियन मे रामजी भुलाने।। केतना दिना होइगा ध्यनवा लगाये। रहिया तकत मोरा नैना थिराने।। ना जाने कौने गलियन मे रामजी भुलाने।। कइसे हम पूर्ण करी गुरू की बचनिया। एक ठइया ठाड़े ठाड़े पउवा पिराने।। ना जाने कौने गलियन मे रामजी भुलाने।। अब आवा प्रभुवर ना देरिया लगावा। तोहरे धियनवा मे सब कुछ भुलाने।। ना जाने कौने गलियन मे रामजी भुलाने।। एतना सुनत राम आये समनवा। आर0 के0 सुतीक्ष्ण का नयना जुड़ाने।। ना जाने कौने गलियन मे रामजी भुलाने।।

कीर्तन: दादरा

शैर: घट मे है सूझै नही, लानत ऐसी जिंद। तुलसी यह संसार को भयो है मोतियाबिंद।। मृग नाभी कुण्डल बसै मृग ढ़ूढै बन माहि। ऐसे घट घट ब्रम्ह है दुनिया जानत नाहि।। निर्बल के प्राण पुकार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे।। आकाश हिमालय सागर मे, पृथ्वी पाताल चराचर मे। यह मधुर बोल गुन्जार रहे।। जगदीश हरे जगदीश हरे।। जब दया दृष्टि हो जाती है, जलती खेती हरियाली है। इस आस पे जन उच्चार रहे।। जगदीश हरे जगदीश हरे।। सुःख दुःख की है परवाह नही, भय है विश्वास ना जाए कही। टूटे ना यह तार लगा रहे।। जगदीश हरे जगदीश हरे।। तुम हो करूणा के धाम सदा, सेवक को देखो आप सदा। इतना ही आर0 के0 सदा कहे।। जगदीश हरे जगदीश हरे।।

दादरा: गोपी की शिकायत

शैर: एक दिन की बात है, गोपी जब जल भरने गई। अपना घड़ा जमुना के जल से भर जभी वापस भई।। कृष्ण जी गागर को फोरे, गोपी सभी चिल्लाने लगी। पास मे यशुदा के जाकर इस हाल को बताने लगी।। करेला मोसे रगरी (2) माई नन्दलाल करेला मोसे रगरी।। सझवा सबेरे जब जाई हम रहिया। पाइके अकेली मोरी पकड़ेला बहिया।। करेला झकझोरी, छीने मोरी गगरी।। माई नन्दलाल करेला मोसे रगरी।। पनिया भरन जब जाई हम तिरवा। फारे चुनर मोरी माई तोर हिरवा।। अखिया से मारे बान, फोरे मोरी गगरी।। माई नन्दलाल करेला मोसे रगरी।। सखियन के संग जब जाई स्ननवा। ग्वाल बाल संग लइके बोले बोलहनवा।। मारे किलकरिया चुरावे मोरी चुनरी।। माई नन्दलाल करेला मोसे रगरी।। सगरी जवनिया का दान मोसे मागे। बतिया सुनावे जइसे प्रेम रस पागे।। आर0 के0 बतावा कइसे यही रही नगरी।। माई नन्दलाल करेला मोसे रगरी।।

बनारसी: अशोक बन मे सीता की दशा

सीता को लेजा रवणवा, अशोक बन बीचा बिठाये हो।। राक्षस राक्षसिनी का किये रखवारी। देखि डेराई जाइ, सिया सिकुमारी।। आफत मे पड़िगा परनवा, अशोक बन बीचा बिठाये हो।। आज्ञा दशानन की सबही निभावे। रात दिन सीता को खूब डरवावे।। त्रिजटा का सुनि ल्या बयनवा।। अशोक बन बीचा बिठाये हो।। थोड़ा समय जब त्रिजटा पावे। सीता की सेवा मे समय मे वितावे।। मइया को दइके धिरजवा।। अशोक बन बीचा बिठाये हो।। सीता कहई सुना त्रिजटा सयानी। अग्नी लिआवा हम तजी जिन्दगानी।। आर0 के0 कठिन बा रहनवा।। अशोक बन बीचा बिठाये हो।।

कजली: कृष्ण की बाल लीला

श्याम दूध पिये चीनी की कटोरी मे, जमुना की खोरी मे ना।। वही नन्द के ललन, खेले जसुदा के भवन। दौड़े सगरउ अगनवा जोरा जोरी मे।। जमुना की खोरी मे ना।। दही माखन चुरावे, ग्वाल बाल को खिलावे। कई बार श्याम पकड़े गये चोरी मे।। जमुना की खोरी मे ना।। चोरी किये नटवर, हुई माँ को खबर। यशुदा श्याम जी को पकड़ि बाधी डोरी मे।। जमुना की खोरी मे ना।। बधिके रस्सी मे श्याम, हुए आप बदनाम। दिलवा आपन लगाये राधा गोरी मे।। जमुना की खोरी मे ना।। हुए आर0 के0 मगन, करके श्याम को नमन। ध्यान दिये श्याम भक्तन की ओरी मे।। जमुना की खोरी मे ना।।

कजली: निर्गुण

चली मरि के करेजवा मे गोली सखी, मुख से ना बोली सखीना। किये सोलहौ सिंगार मोती गुहे बार बार।। रही दुलहिन सुरतिया की भोली सखी।। मुख से ना बोली।। आये चार ठी कहार, बाजा लइके मजेदार। माला फूल से सजाये रहे डोली सखी।। मुख से ना बोली।। रोवई माई अउर बाप, सूना सारा परिवार। हरिअर बास की बनाये रहे डोली सखी।। मुख से ना बोली।। गये गंगा के किनार, चिता किये तइयार। फूके मइयत को जइसे फूके होली सखी।। मुख से ना बोली।। हुआ नइहर बेगाना, लगा ससुरे मे ठिकाना। गोरी छोड़ चली नइहर की टोली सखी।। मुख से ना बोली सखीना।।

दादरा: ईश्वर स्तुति

शैर: जो कोई भगवान के प्राणी पर खुश होता नही। वह कभी दुनिया मे सुख से नीद भर सोता नही।। पाप जितने हो कमाये, अपनी इस जवानी मे। दूर कर लो अब इसे तुम, ईश की कहानी मे।। भजो श्री कृष्ण कन्हाई, उमर यूँ ही सारी गवाई।। राधे गोविन्द नटवर माधो, सीता पति रघुराई।। उमर यूँ ही सारी गवाई।। दामोदर नारायण गिरधर, प्रजापति यदुराई।। उमर यूँ ही सारी गवाई।। वासुदेव श्रीपति मुरलीधर, आनन्द कन्द कन्हाई।। उमर यूँ ही सारी गवाई।। दास आर0 के0 किर्तन गावे, लागो नाथ सहाई।। उमर यूँ ही सारी गवाई।।

भजन: कृष्ण बन्दना

शैर: पर्वत गोवर्धन को लिए जय हो श्री भगवान की। कुछ तो प्रभु सुन लीजिए, इस वक्त अज्ञान की।। हर घर मे मानव ध्यान से, रटते तुम्हारे नाम को। कोई रटे सीतापती, कोई रटे घनश्याम को।। भजो रे मन राधा पति सुखधाम।। कोई कहे तुम्हे अवध विहारी, कोई कहे घनश्याम। कोई पुकारे गोपी बल्लभ, कोई कहे सियाराम।। भजो रे मन राधा पति सुखधाम।। रटन लगे तो अइसन लागे, भजो सुवः अरू साम। गोपीपति गोपाल गोवर्धन, बलदाऊ बलराम।। भजो रे मन राधा पति सुखधाम।। श्रीपति, सीतापति, जय लक्ष्मी पति सुखधाम। आठो पहर जपो मन मेरे, गोवर्धन घनश्याम।। भजो रे मन राधा पति सुखधाम।। भाई बन्धु अरू कुटुम्ब कबीला, अन्त ना आवे काम। कहत आर0 के0 दहु सहारा, मोहि लखन सियाराम।। भजो रे मन राधा पति सुखधाम।।

कजली: शारदा बन्दना

आवा सुनि के पुकार, देवी मइया जी हमार। छोड़ तनिक देर मइहर पहरवा ना।। तुम हो आदि शक्ति मात, हमे राहना सुझात। छाया चारउ ओर देखा अधियरवा ना।। छोड़ तनिक देर।। माफ कइके माँ कसूर, उर का तिमिर कइद्या दूर। दीख पड़े मइया मग का किनरवा ना।। छोड़ तनिक देर।। शब्द कोष माँ बढ़ावा, भक्ति भाव को जगावा। दूर कइद्या तन से द्वेष का जहरवा ना।। छोड़ तनिक देर।। मइया आर0 के0 नदान, मागे भक्ति रूपी दान। दीजै खोलि मइया दया का अचरवा ना।। छोड़ तनिक देर मइहर पहरवा ना।।

कजली: वर्षा वर्णन

आई वर्षा बहार, पिया होइ जा तइयार। लागे सुर सुर ठंडी वयरिया ना।। तन की तपन भई दूर, खेती करब हम जरूर। लइके कधवा पे हल ओर कुदरिया ना।। लागे सुर सुर।। बीज धान का उगावा, मक्का शान से बुआवा। बाद उर्द ज्वार सथवा बजरिया ना।। लागे सुर सुर।। तिल्ली पटसन विचार, बोआ अरहर सम्हार। सनई संग भूल जाओ ना सवरिया ना।। लागे सुर सुर।। धान खेत मे रोपावा, देर आर0 के0 ना लावा। मक्का भून भून करा खातिर दरिया ना।। लागे सुर सुर ठंडी बयरिया ना।।

कजली: कंस द्वारा कन्या का वध

पहुचे देवकी कुमार, नन्द बाबा के दुआर। क्रोधी कंस गया मइया के समनवा ना।। बोल कहाँ मेरा काल, छिपा तेरा अठवा लाल। देवकी मइया सुनिके करती है रूदनवा ना।। क्रोधी कंस गया।। यहतो कन्या है भ्रात, मानो बहना की बात। पइय पड़ूँ छोड़ो बाला का परनवा ना।। क्रोधी कंस गया।। क्रूर कंस खिसिआय, लीन्ह बाला को उठाय। चाहा करूँ अभी क्वारी बधनवा ना।। क्रोधी कंस गया।। गई हथवा से छूट, कंस मानो ना झूठ। तेरा शत्रु हुआ नन्द के भवनवा ना।। क्रोधी कंस गया।। हुए आर0 के0 सुखारी, रूप कृष्णा का निहारी। कंस करई चला मारइ का जतनवा ना।। क्रोधी कंस गया।।

कजली: कृष्ण जन्म

दूर करने अत्याचार, उर मे सोचि करतार। आये श्याम श्री जेल की कोठरिया मे।। भादो माह आधी रात, तिथी अष्टमी सुहात। चमके चम चम बिजुली बदरिया मे।। आये श्याम श्री।। मइया देवकी पुकारी, सुनो अर्ज ये हमारी। भेजो सुन्दर सुत को नन्द की बखरिया मे।। आये श्याम श्री।। बन्धन मुक्त हुए आप, दीजै उर को ना संताप। वरना हमरा जिअरा बचिहै ना फिकरिया मे।। आये श्याम श्री।। सुनिके मइया की आवाज, रखे आर0 के0 की लाज। भेजे कान्धा जी को नन्द की ओसरिया मे।। आये श्याम श्री जेल की कोठरिया में।।

कजली: सीता बिलाप

सिया अपने महल मे बिहार करें, मन मे विचार करें ना।। करती मन मे खियाल, हुई पहले जो हाल। असुवा गारि गारि दुखवा अपार करें।। मन मे विचार करें ना।। साथ त्रिजटा हमारे, बडे़ प्रेम से निहारे। वही लंका मे हमरा दुलार करे।। मन मे विचार करें ना।। रहे जितने हत्यारे, पास हमरे सिधारे। खड़ग कर मे उठाई के पुकार करें।। मन मे विचार करें ना।। देखि अँसुवा की धार, राम पहुँचे उस बार। पूछे राम सिया तुरतइ इनकार करें।। मन मे विचार करें ना।। काहे अँसुवा बहाई, दीजै जल्दी बताई। बतिया सुनि सीता नखरा हजार करे।। मन मे विचार करें ना।। राम रट रट लगाये, सिया भेद को बतायें। आर0 के0 अइसन गितिया तैयार करें।। मन मे विचार करें ना।।

कजली: शिव बारात

शैर: शिव शंकर बारात चले है सज धज भेष निराला है। विच्छू कुण्डल कान मे सोहै कमर बाघ की छाला है।। शिव शंकर अविनाशी के संग, सुरगण बने बराती। नगर हिमाचल की सब नारी, रूप देख भय खाती।। संग मे लइके बरात त्रिपुरारी बने, हिमगिरि दुआरी चले ना।। भूत प्रेत मतवाला, बढ़वा बैल अहै काला। उसपे भोला दानी कइके सवारी चले।। हिमगिरि दुआरी।। बिच्छू गोचर सुहाये, गले नाग लटकाये। नाग के फन से भीषण फुफकारी चल।। हिमगिरि दुआरी।। किये लोखरी सिंगार, संग मे आया सियार। उनके सथवा मे कुत्ता औ विलारी चले।। हिमगिरि दुआरी।। जो ही देखत बरात चेहरा उसका मुर्झात। आर0 के0 शिव को देखिके सुखारी चले।। हिमगिरि दुआरी।।

कजली: निर्गुण

सखी जइबै चली पिया की बखरिया मे।। पिया पतिया पठाये, लगन गवन की धराये। अब ना रहइ मिली बापू की बखरिया मे।। सखी जइबै चली।। हमरे बापू और भइया, छुटिहै मइया जी भउजइया। रोइहै खड़े होके सभी जन ओसरिया मे।। सखी जइबै चली।। प्यारी बहन औ सहेली, छोड़ि जाऊँगी अकेली। कोई जइहै नही सथवा डगरिया मे।। सखी जइबै चली।। पुछिहै पिया पुण्य औ पाप, दइके जिअरा के संताप। भटके आर0 के0 जी प्रभु की दिदरिया मे।।  सखी जइबै चली पिया की नगरिया मे।।

कजली: निर्गुण

सखिया कधइया सुघर सिंगरवा, पिया मोरा अइहै दुवरवा ना।। सथवा अइहै बहुत बराती, शोभा निरखि जुड़इहै छाती। डोलिया साजि के लिये कहरवा।। पिया मोरा अइहै दुवरवा ना।। गुन गुन कान मे आइ अवजिया, धुन बाजे की सुन भइ रजिया। लजिया आवत हिय के किनरवा।। पिया मोरा अइहै दुवरवा ना।। सुनिये हमरी पाँच सहेलिया, विधि से अनुपम बनी महलिया। छोड़बइ मुह को ढ़ापि चदरवा।। पिया मोरा अइहै दुवरवा ना।। अपने बचपन की नादानी, कहबै पिय से जाइ जुबानी। नइया लगि जइहै भव से किनरवा।। पिया मोरा अइहै दुवरवा ना।। आर0 के0 हरिगुण प्रतिदिन गइब्या, वहि साजन से प्रेम बढ़इब्या। पउब्या जीवन मुक्ति घरनवा।। पिया मोरा अइहै दुवरवा ना।।

कजली: कृष्ण आह्वान

आके अपनी तू बसुरी बजावा श्याम। दरसन दिखावा श्याम ना।। जैसे पुतना को मारयो, मान की कंस की घटायो। वैसे आकर के जनवा बचावा श्याम।। दरसन दिखावा श्याम ना।। देव इन्द्र का गुमान, तोड़े आप भगवान। मान आकर के अरिकी घटावा श्याम।। दरसन दिखावा श्याम ना।। किया द्रोपदी पुकार, आप आये उस बार। किये आकर के साड़ी मे बढ़ावा श्याम।। दरसन दिखावा श्याम ना।। हुए भक्त जब दुखारी, हरे कष्ट को मुरारी। आर0 के0 की तू लजिया बचावा श्याम।। दरसन दिखावा श्याम ना।।

भोजपुरी कहरवा: पृथ्वी का व्याकुल होना

वर पाके रावण अनुचरो से बोला ऋषि मुनि का करिये बधानवा, जीति हम लेवइ सगरउ जहनवा।। ऋषि मुनि को राक्षस लगे है सताने। रहना गई उनकी बुध्दि ठिकाने।। अपने पराक्रम से सबही को जीता, छीना है पुष्पक विमानवा, जीति हम लेवइ सगरउ जहनवा।। हाहाकार ऋषी सन्त सुरगण मचावे। छिपा छिपा तनवा को जनवा बचावे।। धेनु रूप मे भू माँ देवो से बोली, अब करिये कोई जतनवा, जीति हम लेवइ सगरउ जहनवा।। सुनि के आवाज देव बोले बचनिया। पृथ्वी माँ चुप रहिये कापै बदनिया।। असुरन्ह अवजिया सुनते ही आके, सबही का हरिहै परनवा, जीति हम लेवइ सगरउ जहनवा।। आर0 के0 सभी प्रभु से अर्जी लगाये। विष्णु गगन पथ से धीरज बधाये।। लेके अवतार भार सब का उतरबै, असुरन्ह का होइहै बधानवा, जीति हम लेवइ सगरउ जहनवा।।

भोजपुरी (नारदमोह)

देवर्षी एक दिनवा हरि गुण को गाते, पहुचे हिमालय की ओर, आने लगा वहि पर पवन का झकोर।। कल कल का शब्द करे सुरसरि मयनवा। तरूवर तला पर था खग का रहनवा।। करते गुन्जार देव नदिया किनरवा पिहके बगलिया मे मोर।। आने लगा।। पर्वत नदी वन की शोभा निराली। मनहारी लगती थी कोयल की बोली।। पिउ पिउ रटनवा पपीहा लगाये, होता सुखद बन शोर।। आने लगा।। हिरनी हिरन मौज मस्ती मे झूमे। बार बार हिरनी हिरन देहिया चूमे।। करते कुलेल देखि नारद का मनवा होइ गइले तप मे विभोर।। आने लगा।। श्राप भूलि नारद लगाये धियनवा। हुए कामजीत मगर मचिगा तुफनवा।। आर0 के0 नही प्रभु की माया को जाने।  नारद झुके मदकी ओर आने लगा वहि पर पवन का झकोर।।

दुर्गा स्तुति (मोरी छतरी के नीचे)

श्लोक: दुर्गे स्मृता हरति भीतिम् शेष जन्तोः स्वच्छः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि, दारिद्रय दुख भय हरिणी का त्वांदन्या सर्व उपकार करणाय सदार्द चिता।। उरमे अति प्रेम बढ़ा के जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।। माँ चर्तुभुजी कहलाती, उर का सब पाप, मिटाती। संग सब जन प्रीति बढ़ाके, जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।। तुम आदि शक्ति हो माता, नहि मग है कही दिखाता। मन से सब अर्ज सुनाके।। जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।। महिषासुर मर्दिन माता, बन भक्तन की सुखदाता। कर से कर सभी मिलाके।। जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।। तब शरण आर0 के0 आये, गुरू श्री राम सुःख पाये। मन की सब मैल मिटाके।। जय बोलो माँ की घड़ी घड़ी।।

दुर्गा दरबार वर्णन (नॅथनिया पे गोली)

कितना सुहाये मइया सच्चा दरबार हो, भजनिया मे लीन भयल सारा संसार हो।। चर्तुभुजी रूप मइया तोहरा सुहाये। कर मे त्रिसूल संग खप्पर उठाये।। रक्तासुर को मारि किहलिउ जन उद्धार हो।। भजनिया मे लीन भयल सारा संसार हो।। प्रेम भाव अम्बे तोहरे हिय मे समाया। दुर्जन के खातिर कर मे खड़ग उठाया।। महिषासुर को मारि जग मे किहिउ उजियार हो।। भजनिया मे लीन भयल सारा संसार हो।। भक्तन को दिहलिउ मइया हरदम सहारा। उनकी नवरिया किहलिउ भव से किनारा।। श्म्भिु और त्रिशिम्भु मइया गया तोहसे हार हो।। भजनिया मे लीन भयल सारा संसार हो।। आर0 के0 पुकारे दया दृष्टि अब दिखावा। कहे श्री राम अरि को मारि के भगावा।। सभी जन के हिय से भागे द्वेष का विकार हो।। भतनिया मे लीन भयल सारा संसार हो।।

दुर्गा आरधना

लागत सुन्दर क्वार महिनवा, आयल नवरातर का दिनवा, चलिके मइया से पिरितिया लगाइल्या मितवा।। लागल।। पापनासिनी अम्बे माँ की प्यार से करो भजनिया। सिंह वासिनी प्यारी माँ से लागल बड़ी लगनिया।। मइया आदि शक्ति महरानी, उनकी डगर नही अनजानी।। चला चली विपतिया हटाल्या मितवा।। लागत सुन्दर क्वार।। दुष्ट मर्दिनी दुर्गा माँ जी हरदम दया लुटाती। जो भी इनके द्वारे जाता अमर प्रेम बरसाती।। उर का तिमिर दूर होइ जाए, मन की मैल सदा धुल जाए, चला माँ का मन्दिरवा सजाल्या मितवा।। लागत सुन्दर क्वार।। शिम्भु निशिम्भु का प्राण नसइया आप हऊ महरानी। दया का आचर खोला मइया महिमा तोहरा जानी।। तन से काम क्रोध हर लेती, द्वेष हो दूर यही वर देती। आके माँ से अरजिया लगाइल्या मितवा।। लागल सुन्दर क्वार।। सदा आर0 के0 तोहसे भइया आपन विनय सुनावे। प्रेम भाव को दरसा मइया श्रध्दा सुमन चढ़ावे।। तोहसे करइ मनोज सहारा, मन से गन्दा भाव विसारा। आवा माँ से अरजिया सुनाल्या मितवा।। लागत सुन्दर क्वार।।

शिव महिमा

शिव शंकर की महिमा अपार, चला चली दरसन करी।। माथे सोहे तिलक चन्द्रमा। सर बहती गंगा धार।। चला चली दरसन करी।। गरदन पे सोहेला सर्पन की माला। बूढे़ बैल पे सवार।। चला चली दरसन करी।। कर त्रिशूल बाघम्बर ओढ़े। विष का किये अहार।। चला चली दरसन करी।। भूत पिशाच संग शंकर के। करते मदन जय क्षार।। चला चली दरसन करी।। जो धावत फल पावत मन का। कटते पाप हजार।। चला चली दरसन करी।। आर0 के0 नही शिव की माया को जाने। जो है अगम अपार।। चला चली दरसन करी।।

कौवाली: मुश्किल है

शैर: कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात। भरे भवन मे करत है नयनन ही सो बात।। इस कपटी संसार मे कुछ है मुश्किल काम। उसका वर्णन आप सब सुनो हृदय को थाम।। जब प्रेमी प्रेमिका छुटते है तब रात बिताना मुश्किल है। अनजाने दिल जब मिलते है तब प्यार दिखाना मुश्किल है।। कहते हैं कहावत शूल विना पुष्पो का पाना मुश्किल है। सतवंती नारी जब मिलती तब ही तो रिसाना मुश्किल है।। इस जग मे गरीबी पाकर के उन्नति पर जाना मुश्किल है। जब मूर्ख महा कोई होता तब ज्ञान सिखाना मुश्किल है।। सत्कर्म किये बिन ईश्वर के दरबार मे जाना मुश्किल है। बिन अन्तः करण पवित्र किये श्री हरी को रिझाना मुश्किल है।। लिखे गीत आर0 के0 फैशन को इस जग से हटाना मुश्किल है। जबकि फैशन की दुनिया मे दिन रैन विताना मुश्किल है।।

गीत: लक्ष्मण शक्ति

शैर: राम औ रावण मे जमकर, शुरू हुआ संग्राम। लक्ष्मण सोचे मेघनाथ का कर दूँ काम तमाम।। दीन हितैषी रघुवर से वे, आज्ञा लेकर धाये। मेघनाथ के सम्मुख जाकर, उससे पीछा खाये।। रामादल मे दुःख की बढ़ी बदरिया हो, रोवे राम अँसुवा बहाइके। मेघनाथ क्रोध कइके मारा शक्तिी बनवा। जाइके घुसा है वाण लक्ष्मण के तनवा।। मुर्झा मे आई गई शरिरिया।। रोवे राम अँसुवा बहाइके।। हनुमत जी लेके आये राम के अगारी। ब्याकुल हुए है रघुवर तन को निहारी।। सूनी भइली माया की बजरिया।। रोवे राम अँसुवा बहाइके।। धइके चरनिया प्रभु की बजरंग पुकारे। जाइके सजीवन लउबइ बलसे तुम्हारे।। पहुचे है हिमगिरि मझरिया हो।। रोवे राम अँसुवा बहाइके।। धौलागिरि पर्वत लाये प्रभु के समनवा। आर0 के0 झुका के शीश करे दरसनवा।। लखड़ लाल की जिन्दा भई शरिरिया हो।। रोवे राम अँसुवा बहाइके।।

आरती: गायत्री माता की

आरति श्री गायत्री जी की। जीवन ज्योति जलावल हिय की।। आरति श्री गायत्री जी की।। आदि शक्ति तुम अलख निरंजन, जग पालक हो भव दुःख भंजन। करहु सदा सन्तन मन रंजन।। सुखकारी हो माँ सबही की।। आरति श्री गायत्री जी की।। स्वाहा स्वधा शची ब्रम्हाणी, वाणी विद्या जय रूद्राणी। भक्त जनन की तुम कल्याणी, तुम प्रिय सब भक्तन्ह के हिय की।। आरति श्री गायत्री जी की।। ऋग, यज, साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे माँ जननी। कामधेनु सतचित सुख दयनी, अहित करहि नहि माँ कपटी की।। आरति श्री गायत्री जी की।। काम क्रोध मद लाभ हमारे, होहि द्वेष दुर्भाव किनारे। मागहु यह बर दुह कर जोरे, देहु भक्ति अविरल चरनन की।। आरति श्री गायत्री जी की।।

गीत: पुरवासी विलाप

सवैया: हे प्रिय भ्रात सुझात नही हिय मोर अहै अति आज दुखारी। राम जी राज नही करिहै अब जात अहै बन बीच मझारी।। वृझ अवध का काटि दियो, बनि भ्रात सुनो कैकेई कुठारी। भूप ना बोलहि होश नही, है दखि रहा रनिवास दुखारी।। बनि गइली कैकेई कुठारी, गजब करि डारी रे हारी।। मागी लिहली नृप जी से दुइ बरदनवा। भरत जी भूप बने पहिला मगनवा।। दुसरा अहइ बड़ दुखारी।। गजब करि डारी रे हारी।। निठुर कैकेई बोली सुना नृप प्यारे। राम जी को ओट कइद्या ऑख से हमारे।। यही हउवे अरज हमारी।। गजब करि डारी रे हारी।। राजा को बिहोसी छाये सुनिके बचनिया। थर थर कापई लागी उनकी बदनिया।। कहाँ राम नृपवर पुकारी।। गजब करि डारी रे हारी।। आर0 के0 नयनवा से असुवा बहाये। सिया औ लखन राम रहिया सिधाये।। तन पे जोगिया पट डारी।। गजब करि डारी रे हारी।।

गीत: राम वन गमन

शैर: गुरू आज्ञा से दशरथ बोले तिलक राम का होय। मगर विधाता उनका खेला पल मे दीन्हा खोय।। कैकेई राजा दशरथ से मागी दो बरदान। एक से राजा बने भरत जी राम को हो बनबास।। चले अवध बिहारी अवध नगरिया छोड़ के।। सीता माँ रनिवास के अन्दर जब ऐसा सुन पाई। दौड़ के आई राम के सम्मुख पग मे शीश झुकाई।। बोली मै भी चलूंगी पग मे पिरितिया जोड़ के।। चले अवध।। श्री राम जी उन्हे उठाये सुनकर आरत बानी। चलो संग मे सोच छोड़िके हे सीते महरानी।। तबहीं लक्ष्मण दिखायें भू पर चरनियां तोड़ के।। चले अवध।। आँसू के टपकाव से भीगा प्रभु का कोमल पैर।         बोले आपको तजकर मेरा नही जगत मे और।। मरूँ जिऊँगा सदा ही तुमही नाता जोड़ के।। चले अवध।। कहे आर0 के0 तीनउ जनवा चल है बन की ओर। दुःख का बादल अवध जनो को पल मे दिया झझोर।। पहुंचे सुरसरि किनरवा सबही से मुखड़ा मोड़िके।। चले अवध बिहारी अवध नगरिया छोड़ के।।                                                                                                

नटका: ईश्वर से विनय

शैर: सॉवरे श्याम अगर, प्यार आप का पाऊँ।           चरण रज आपकी, मै शीश पर चढ़ा जाऊँ।।           विनय है बार बार, मुझे अब बिसारो ना।           निगाह से अपने स्वामी, मुझको तुम उतारो ना।।             तनी ताक लेत्या नजरिया उगइके।।           गणिका तारया, अजामिल तारया।           तारया अहिल्या चरनिया छुआइके।। तनी ताक लेत्या नजरिया उगइके।।           गज के तारया औ मीरा के तारया।           सुदामा के तारया महलिया बनाइके।। तनी ताक लेत्या नजरिया उगइके।।           भक्तन के तारया असुर संघारया।           शबरी के तारया तू भक्ती बताइके।। तनी ताक लेत्या नजरिया उगइके।।           ध्रुव को तारया औ होलिका को मारया।           आर0 के0 को तारया तू ज्ञनवा बताइके।। तनी ताक लेत्या नजरिया उगइके।।

हनुमान बन्दना

श्लोक: अतुलित बलधामम् हेम शैला भदेहम् दनुज                बन कृशानुम ज्ञानिनाम् अग्रगण्यम्                सकल गुणनिधानम् बानराणामधशिम्                रघुपति प्रिय भक्तम बातजातम् नमामि।।                  सुनिल्या पुकार, मोरी सुनिल्या पुकार अंजनि के लाल।                पकड़ी हम तोहरी चरनिया हो।। अंजनि जी के लाल।।                तुमही सुग्रीव जी की रक्षा कराया।                बाली को होइ गइ बधनिया हो, अंजनि जी के लाल, पकड़ी हम -                लंका मे जाके सिया सुध लिआये।                बनी राख लंका नगरिया हो, अंजनि जी के लाल, पकड़ी हम -                रक्षा करइमे ना देरी लगावा।                आके दिखाइ द्या बदनिया हो, अंजनि जी के लाल, पकड़ी हम -                काहे को आर0 के0 की सुधिया विसारे।                हमरी बताइ द्या नदनिया हो, अंजनि जी के लाल, पकड़ी हम तोहरी चरनिया हो।।

नकटा: राधा द्वारा दही का बखान

शैर: दधि बेचन राधा चली सर पर मटकी डारि।           पहुचि कधइया के द्वारे पर मटकी दइ उतारि।।           दही खरीदन को नर नारी, पास गये निअराई।           जो भी आता उनके सम्मुख, राधा करे बढ़ाई।।             दहिया बड़ा नीको, दहिया बड़ा नीको।।           लइल्या कधइया दहिया बड़ा नीको।           एहमुर लखा तनिके फेरिके नजरिया।           पानी ना पउब्या तू एहिमा सवरिया।।           हथवा ना लाग अहइ नाहि अहइ फीको।।           लइल्या कधइया दहिया।।           सुन्दर दही बाटे होइहै ना धोखा।           पइब्या ना अइसन हमार माल चोखा।।           दाम लेब पहिले उधार नही चीखो।।                    लइल्या कधइया दहिया।।           दहिया खरीदा तू माना कहनवा।           अइसन दही नाही अइहै समनवा।।           बात माना हमरी पछतावा ना जी को।।                       लइल्या कधइया दहिया।।           हमरे दही का तू लइल्या सुवदवा।           आर0 के0 नही मरिहै बहुत बहुत मेहनवा।।           मिटा लीजै शंका दहिया लगे नीको।। लइल्या कधइया दहिया।।

दादरा: हनुमान बन्दना

शैर: पवन तनय संकट हरण मंगल मूरत रूप।         रामलखन सीता सहित हृदय बसहु सुरभूप।।           खल दल पावक ज्ञान धर, बन्दहु पवन कुमार।           बसहु राम सर चापधर, जासु हृदय आगार।।           हे महाबीर अंजनी लाल हम बारम्बार प्रणाम करे।।           अपनी माता के कहने से रवि मंडल तुमने लील लिया।           बचपन का प्रभुबर है कमाल।। हम बारम्बार प्रणाम करे।।           अपने भाई की राजनारि जब बालिबीर ने छीन लिया।           उस बालि नीच के बने काल।। हम बारम्बार प्रणाम करे।।           रावण की नगरी मे जाकर सीता माता की खोज किये।           सगरी नगरी को किया लाल।। हम बारम्बार प्रणाम करे।।           है खड़ा आर0 के0 कर जोड़े इक झलक प्रेम से दिखलाओ।           आकर के भगवन करो ख्याल।। हम बारम्बार प्रणाम करे।।

गजल: सीता फुलवारी

शैर: दुर्गा पूजन को चली, जनक लली इक बार। स्खियो सहित बाटिका मे जा, देखत नयन उघार।। दशरथ सुवन सुमन लेने को, पहुचे थे उस ओर। प्रेम बाण से हुआ था घायल, प्रभु के हृदय का छोर।।                     मग से सुहाते रामलखन गुरू के साथ मे।           पहुचे जनक बगीचे मे हैं गुरू के साथ मे।।           बोले है गाधि पुत्र कुवर पुष्प जा के लाओ।           पहुचे है फूल बगिया भाई के साथ मे।।           मन मे तमन्ना दुर्गा पूजन को लेके सीता।           पहुची वहॉ पे सीता सखियो के साथ मे।।           नजरे हुई है चार जभी राम औ सिया जी की।           हरे है कामदेव जी उन सब के साथ मे।।           विनती सुनी है मइया जब आर0 के0 पुकारा।           आके लौट के रघुवर भाई के साथ मे।।

पूर्वी: निर्गुण

दुखवा मे बीतल तोहरी सगरउ उमरिया रे मन पूजा कइले।। होके प्रभु पग मे विभोर।। रे मन पूजा कइले।। जवने दिन अइहै पास प्रभु का संदेशवा। सुध बुध भुलाई जइहै होइहै कलेशवा।। रे मन पूजा कइले।। कोमल जिअरा होइ जाए कठोर।। रे मन पूजा कइले।। विधि से बनाई अनुपम ढंग से महलिया। छुटि जइहै सगरी तोहरी संग की सहेलिया।। रे मन पूजा कइले।। हाय हाय मचै लगै शोर।। रे मन पूजा कइले।। ऊपर देखा चादर नीचे चादर बा बिछाई। जात समय मे चादर छुटिगै आई गई तनहाई।। रे मन पूजा कइले।। अधियर से भइल बा अजोर।। रे मन पूजा कइले।। पाप पुण्य बीच होइहै बहुतै लड़ाई। आ0 के0 ना रहिया तबही पड़िहै दिखाई।। रे मन पूजा कइले।। होइहै पापी जिअरा के झझोर।। रे मन पूजा कइले।।

पर्वत कहता

  पर्वत कहता शीश उठाकर  तुम भी ऊँचे बन जाओ। सागर कहता है लहराकर मन में कुछ गहराई लाओ। समझ रहे हो क्या कहती है उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग भर लो भर लो अपने मन में मीठी-मीठी मृदुल उमंग। धरती कहती धैर्य न छोड़ो कितना भी हो सिर पर भार नभ कहता है फैलो इतना  ढ़क लो तुम सारा संसार। सोहनलाल द्विवेदी

मधुराष्टकम्

 मधुराष्टकम् अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्। वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्। चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।। वेणुर्मधरो रेणर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ। नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्। गीतं मधुरं पीतं मधुरं भक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्। रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।। करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्। गुंजा मधुरा माला मधुरं यमुना मधुरं वीची मधुरम्। सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।। गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्। दुष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेाखिलं मधुरम्।। गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा। दलितं मधरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।।